धैर्य.....?

धैर्य रखना कोई बच्चों का खेल नही बल्कि धैर्य तो मानव जीवन की एक कड़ी परीक्षा होती है जिसे उत्तीर्ण कर पाना हर किसी के बस की बात नही ।

बड़ा मुश्किल होता है धैर्य को धारण करना चाहे वो जिस परिस्थिति की बिपदा में हो।
और धैर्य खो देने के बाद हमेशा काम को बिगड़ते हुए देखा जा सकता है
परन्तु सवाल ये है कि हम स्वयं धैर्य को धारण करने में असफल क्यों हो जाते है क्या हमारी सारी कमजोरिया धैर्यता को बनाये रखने के समय ही अपनी सारी मर्यादाओ का उल्लंघन करेंगी ।
सच तो ये है कि आवेष में आकर हम फैसलो को निर्धारित करते है

परिणाम की चिंता करते ही नही सिर्फ बर्तमान को मजबूत करने में ज्यादा जोर देते है
और सिर्फ इसी बात और विचार की बजह से हमेशा धैर्य खंडित हो जाता है।
चिंतन और भविष्य का आकलन धैर्य को बनाये रखने में हमेशा सहयोगी सिद्ध हुआ है।