मौर्य राजवंश


मौर्य राजवंश

सबसे शक्तिशाली और सबसे मजबूत राजवंश की कहानी .....

322 ई.पू. में विष्णुगुप्त ने एक बालक की प्रतिभा को पहचान कर उसे एक हजार कषार्पण में खरीदा था जो बालक मोरिय बंश का क्षत्रिय थातथा उसके पिता मोरिय नगर प्रमुख थे दुर्भाग्य बस इस बालक के पिता जब यह बालक गर्भ में था तो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे  इस बालक का जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था तथा एक गोपालक द्वारा पोषित किया गया था। इस बालक का नाम चन्द्रगुप्त मौर्य था । चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म वंश के सम्बन्ध में विवाद है । ब्राह्मणबौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है । चारावाह तथा शिकारी रूप में ही राजा-गुण होने का पता विष्णुगुप्त ने कर लिया था चन्द्रगुप्त मौर्य में | तत्पश्‍चात्‌ विष्णुगुप्त ने तक्षशिला लाकर सभी विद्या में निपुण बनाया चन्द्रगुप्त मौर्य को ।चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू विष्णुगुप्त की सहायता से धनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दों के अत्याचार व घृणित शासन से मुक्‍ति दिलाई और देश को एकता के सूत्र में बाँधा और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
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यह साम्राज्य गणतन्त्र व्यवस्था पर राजतन्त्र व्यवस्था की जीत थी। इस कार्य में अर्थशास्त्र नामक पुस्तक द्वारा विष्णुगुप्त ने सहयोग किया। विष्णुगुप्त के चाणक्य  व कौटिल्य अन्य नाम हैं।
आर्यों के आगमन के बाद यह प्रथम स्थापित साम्राज्य था । जिस समय चन्द्रगुप्त राजा बना था भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत खराब थी। उसने सबसे पहले एक सेना तैयार की और सिकन्दर के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ किया। 317 ई. पू. तक उसने सम्पूर्ण सिन्ध और पंजाब प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। अब चन्द्रगुप्त मौर्य सिन्ध तथा पंजाब का एकक्षत्र शासक हो गया। पंजाब और सिन्ध विजय के बाद चन्द्रगुप्त तथा चाणक्य ने धनानन्द का नाश करने हेतु मगध पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में धनाननन्द मारा गया अब चन्द्रगुप्त भारत के एक विशाल साम्राज्य मगध का शासक बन गया। सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस उसका उत्तराधिकारी बना।

शिकंदर के विषय में जानते है संक्षिप्त में 
                                                             इन्स्ताबुल पुरातत्व संग्रहालय में सिकंदर की मूर्ति 


सिकंदर

महान सिकंदर का नाम द ग्रेट अलेक्स्ज़ेन्डर भी कहा जाता है की वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। खा जाता है की सिकंदर अपनी मृत्यु तक वह उन सभी भूमि मे से लगभग आधी भूमि जीत चुका थाजिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी (सत्य ये है की वह पृथ्वी के मात्र प्रतिशत हिस्से को ही जीत पाया था)और उसके विजय रथ को रोकने में सबसे मुख्य भूमिका भारत के राजा पुरु (जिन्हें युनानी इतिहासकारों नें पोरस से सम्बोधित किया है) और भारत के क्षेत्रीय सरदारों की थीजिन्होंने सिकंदर की सेना में अपने पराक्रम के दम पर भारत के प्रति खौफ पैदा कर उसके हौसले पस्त कर दिये और उसे भारत से लौटने पर मजबूर कर दिया।


उसने अपने कार्यकाल में इरानसीरिया,मिस्र,मसोपोटोमियाफिनीशियाजुदेआगाझा बक्ट्रीय और भारत में पंजाब जिसके राजा पुरु थे) तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी परन्तु बाद में वो मगध की विशाल सेना से डर कर लौट गया।
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वह सिकन्दर द्वारा जीता हुआ भू-भाग प्राप्त करने के लिए उत्सुक था। इस उद्देश्य से 305 ई. पू. उसने भारत पर पुनः चढ़ाई की। चन्द्रगुप्त ने पश्‍चिमोत्तर भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित कर एरिया (हेरात)अराकोसिया (कंधार)जेड्रोसिया (मकरान)पेरोपेनिसडाई (काबुल) के भू-भाग को अधिकृत कर विशाल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलना (कार्नेलिया) का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया। हलाकि चन्द्रगुप्त की पहली पत्नी दुर्धरा थी कुछ लेखको द्वारा बताया गया है की दुर्धरा की मृत्यु का कारण एक ऐसा  विष था जिसे विष्णुगुप्त द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य को नियमित निम्न मात्रा में खिलाया जाता था जिससे शत्रुओ द्वारा किये गए विष प्रयोग का असर चंद्रगुप्त मौर्य के शरीर में न हो और एक दिन अचानक जो भोजन चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए था उसे दुर्धर द्वारा ग्रहण कर  लिया गया और उस समय चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तरादिकारी यानि बिन्दुसार दुर्धरा के गर्भ में थे किसी तरह दुर्धरा का शीश काट कर विष को गर्भ तक पहुचने से रोका गया और विन्दुसार को दुर्धरा का पेट फाड़कर निकाला गयाचन्द्रगुप्त के दो पुत्रो का वर्णन मिलता है एक विन्दुसार जो की उतराधिकारी बना और दूसरा जस्टिन जो की हेलना और चन्द्रगुप्त का पुत्र था जिसे अंततः हेलना द्वारा मृतुदंड दिया गया था खुद को सुरक्षित करने हेतु चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्‍चिम भारत में सौराष्ट्र तक प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत शामिल किया। गिरनार अभिलेख (150 ई. पू.) के अनुसार इस प्रदेश में पुण्यगुप्त वैश्य चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था। इसने सुदर्शन झील का निर्माण किया। दक्षिण में चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी कर्नाटक तक विजय प्राप्त की। चन्द्रगुप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुलहेरातकन्धारबलूचिस्तानपंजाबगंगा-यमुना का मैदानबिहारबंगालगुजरात था तथा विन्ध्य और कश्मीर के भू-भाग सम्मिलित थेलेकिन चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना साम्राज्य उत्तर-पश्‍चिम में ईरान से लेकर पूर्व में बंगाल तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक तक विस्तृत किया था। अन्तिम समय में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना राजसिंहासन त्यागकर कर जैन धर्म अपना लिया था। ऐसा कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु जैनमुनि भद्रबाहु के साथ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में संन्यासी के रूप में रहने लगे थे । इसके बाद के शिलालेखों में भी ऐसा पाया जाता है कि चन्द्रगुप्त ने उसी स्थान पर एक सच्चे निष्ठावान जैन की तरह आमरण उपवास करके दम तोड़ा था। वहां पास में ही चन्द्रगिरि नाम की पहाड़ी है जिसका नाम सम्भवतः चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम पे रखा गया था |
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भारत में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासनकाल में ही राष्ट्रीय राजनीतिक एकता स्थापित हुइ थी मौर्य प्रशासन में सत्ता का सुदृढ़ केन्द्रीयकरकियागया था मौर्य काल में गणतन्त्र का ह्रास हुआ और राजतन्त्रात्मक व्यवस्था सुदृढ़ हुईचाणक्य ने राज्य सप्तांक सिद्धान्त निर्दिष्ट  किया थाजिनके आधार पर मौर्य प्रशासन और उसकी गृह तथा विदेश नीति संचालित होती थी राजाअमात्य जनपददुर्गकोषसेनाऔरमित्र |
मौर्य साम्राज्य के समय एक और बात जो भारत में अभूतपूर्व थी वो थी मौर्यो का गुप्तचर जाल उस समय पूरे राज्य में गुप्तचरों का जाल बिछा दिया गया था जो राज्य पर किसी बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह की  खबर प्रशासन तथा सेना तक पहुँचाते थे।
सैन्य व्यवस्था छः समितियों में विभक्‍त सैन्य विभाग द्वारा निर्दिष्ट थी।  प्रत्येक समिति में पाँच सैन्य विशेषज्ञ होते थे।
पैदल सेनाअश्‍व सेनागज सेनारथ सेना तथा नौ सेना की व्यवस्था थी।
सैनिक प्रबन्ध का सर्वोच्च अधिकारी अन्तपाल कहलाता था। यह सीमान्त क्षेत्रों का भी व्यवस्थापक होता था|
मेगस्थनीज के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना छः लाख पैदलपचास हजार अश्‍वारोहीनौ हजार हाथी तथा आठ सौ रथों से सुसज्जित अजेय सैनिक थेचाणक्य ने अर्धशास्त्र में नगरों के प्रशासन के बारे में एक पूरा अध्याय लिखा है।उसके अनुसार पाटलिपुत्र नगर का  शासन एक नगर परिषद द्वारा किया जाता था जिसमें ३० सदस्य थे ये तीस सदस्यपांच=पाच सदस्यों वाली छः समितियों में बंटे होते थे। प्रत्येक समिति का कुछ निश्चित काम होता था।पहली समिति का काम औद्योगिक तथा कलात्मक उत्पादन से सम्बंधित था इसका काम वेतन निर्धारित करना तथा मिलावट रोकना भी था दूसरी समिति पाटलिपुत्र में बाहर से आने वाले लोगों खासकर विदेशियों के मामले देखती थी।तीसरी समिति का ताल्लुक जन्म तथा मृत्यु के पंजीकरण से था चौथी समिति व्यापार तथा वाणिज्य का विनिमयन करती थी।इसका काम निर्मित माल की बिक्री तथा पण्य पर नज़र रखना था।पाँचवी माल के विनिर्माण पर नजर रखती थी तो छठी का काम कर वसूलना था।नगर परिषद के द्वारा जनकल्याण के कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार के अधिकारी भी नियुक्त किये जाते थे,जैसे सड़कोंबाज़ारोंचिकित्सालयोंदेवालयोंशिक्षा,संस्थाओंजलापूर्तिबंदरगाहों की मरम्मत तथा रखरखाव का काम करना। भारत घूमने की सबसे सस्ती और अच्छी जगह
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नगर का प्रमुख अधिकारी नागरक कहलाता था।चाणक्य ने नगर प्रशासन में कई विभागों का भी उल्लेख किया है जो नगर के कई कार्यकलापों को नियमित करते थे,
जैसे -लेखा विभागराजस्व विभागखान तथा खनिज विभागरथ विभाग,अशोक  सीमा शुल्क और कर विभाग।इतने बड़े साम्राज्य की स्थापना काएक परिणाम ये हुआ कि पूरे साम्राज्य में आर्थिक एकीकरण हुआ।किसानों को स्थानीय रूप से कोई कर नहीं देना पड़ता थाहँलांकि इसके बदले उन्हें कड़ाई से पर वाजिब मात्रा में करकेन्द्रीय अधिकारियों को देना पड़ता था। उस समय की मुद्रा पण थी।
अर्थशास्त्र में इन पणों के वेतनमानों का भी उल्लैख मिलता है।न्यूनतम वेतन ६० पण होता था जबकि अधिकतम वेतन ४८,००० पण था।छठी सदी ईसा पूर्व (मौर्यों के उदय के कोई दो सौ वर्ष पूर्व) तकभारत में धार्मिक सम्प्रदायों का प्रचलन था।
ये सभी धर्म किसी  किसी रूप से वैदिकप्रथा से जुड़े थे|  छठी सदी ईसापूर्व में कोई ६२ सम्प्रदायों के अस्तित्व का पताचला है जिसमें बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय का उदय कालान्तर में अन्य की अपेक्षा अधिक हुआ मौर्यों के आते आते बौद्ध तथा जैन सम्प्रदायों का विकास हो चुका था। उधर दक्षिण में शैव तथा वैष्णव सम्प्रदाय भी विकसित हो रहे थे। मौर्य प्राचीन क्षत्रिय कबीले के हिस्से रहे है।ब्राह्मण साहित्य,विशाखदत्त कृत व यूनानी स्रोतों के अनुसार मोर्या क्षत्रिय सुरियावंशी राजवंश हैजब मौर्य साम्राट ने बौद्ध धम्म स्वीकार करके सभी प्रजा को समानता और दास प्रथा समाप्त करवाई धर्म के पाखंडवाद की जगह भाईचारे को बढ़ावा दिया और धार्मिक जुलूस आदि काम किये तो ब्रामण सामाज के पेट पर लात पड़ी इसी राजनीतिक द्धेशता के कारण ब्रामाण लेखकों ने मौर्य जाति को शूद्र लिखा । मौर्य के क्षत्रिय होने के प्रमाण सम्राट अशोक के शिलालेख में लिखा है मैं उसी जाति में पैदा हुवा हूं जिसमें स्वंय बुद्ध पैदा हुवे। बुद्ध की जाति की प्रामाणिकता हो चुकी है कि वो क्षत्रिय कुल में पैदा हुवे थे । । और स्वंय चाणक्य कट्टरवादी ब्रामण थे वो कभी भी किसी शुद्र को न अपना शिष्य बनाते और न ही चन्द्रगुप्त को राजा बनने में मदद करते। चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे 'इसी योग्यता को देखते हुए चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लियाएवं एक सबल राष्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है।
कौटिल्य ने राज्य सप्तांक सिद्धान्त निर्दिष्ट किये थे, जिनके आधार पर मौर्य प्रशासन और उसकी गृह तथा विदेश नीति संचालित होती थी - राजा, अमात्य जनपद, दुर्ग, कोष, सेना और, मित्र।


अर्ध्यशास्त्र ग्रन्थ  के अनुसार प्राचीन भारत के पदाधिकारी

राजा - King                                                    युवराज  - Crown prince
सेनापति  - Chief armed forces                      परिषद्  - Council
नागरिक  - City manager                                पौरव्य वाहारिक  - City overseer
मन्त्री  - Counselor                                         कार्मिक  - Works officer
संनिधाता  - Treasurer                                     कार्मान्तरिक  - Director, factories
अन्तेपाल  - Frontier commander                   अन्तर विंसक  - Head, guards
दौवारिक  - Chief guard                                  गोप  - Revenue officer
पुरोहित  - Chaplain                                        करणिक  - Accounts officer
प्रशास्ता  - Administrator                               नायक  - Commander
उपयुक्त  - Junior officer                                 प्रदेष्टा  - Magistrate
शून्यपाल  - Regent                                         अध्यक्ष  - Superintendent



मौर्य शासको की सूची

  1. चंद्रगुप्त मौर्य                     322-298 ईसा पूर्व (25 वर्ष)
  2. बिन्दुसार                          298-273 ईसा पूर्व (26 वर्ष)
  3. अशोक                            269-232 ईसा पूर्व (37 वर्ष)
  4. कुणाल                             232-228 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
  5. दसरथ                             228-224 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
  6. सम्प्रति                             224-215 ईसा पूर्व (9 वर्ष)
  7. शालिसुक                         215-202 ईसा पूर्व (13 वर्ष)
  8. देववर्मन                           202-195 ईसा पूर्व (7 वर्ष)
  9. शतधन्वन                        195-187 ईसा पूर्व (8 वर्ष)
  10. ब्रहद्रथ                             187-185 ईसा पूर्व (2 वर्ष)   




एक ऐसा सम्राट जिसका परिवार खुद षड्यंत्रों का निर्माता था


बिन्दुसार (२९८ ई. पू. से २७३ ई. पू.)- यह चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र व उत्तराधिकारी था जिसे वायु पुराण में मद्रसार और जैन साहित्य में सिंहसेन कहा गया है। यूनानी लेखक ने इन्हें अभिलोचेट्‍स कहा है। यह २९८ ई. पू. मगध साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा। जैन ग्रन्थों के अनुसार बिन्दुसार की माता दुर्धरा थी। थेरवाद परम्परा के अनुसार वह ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। प्रशासन के क्षेत्र में बिन्दुसार ने अपने पिता का ही अनुसरण किया। कहा जाता है की बिन्दुसार के समय में भारत का पश्‍चिम एशिया से व्यापारिक सम्बन्ध अच्छा था। बिन्दुसार के दरबार में सीरिया के राजा एंतियोकस ने डायमाइकस नामक राजदूत भेजा था। मिस्र के राजा टॉलेमी के काल में डाइनोसियस नामक राजदूत मौर्य दरबार में बिन्दुसार की राज्यसभा में आया था। बिन्दुसार की सभा में ५०० सदस्यों वाली मन्त्रिपरिषद्‍थी जिसका प्रधान महामात्य खल्लाटक था।

कुछ प्रचलित कहानियो के अधार पर हम विन्दुसार के शासन काल को जानने का प्रयास करते है

सम्राट बिन्दुसार के पिता का नाम महान चन्द्रगुप्त मौर्य था और माता का नाम दुर्धरा था बिन्दुसार के जन्म के पूर्व ही माता का देहांत विश की बजह से हो जाता है विन्दुसार का पालन पोषण उनकी सौतेली माँ सेलुकश निकेटर की पुत्री हेलना द्वारा तथा विष्णुगुप्त के सरक्षण में होता हैविन्दुसार का प्रथम विवाह चारुमित्रा नामक राजकुमारी से हुआ था जिससे उन्हें प्रथम पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम शुशीम था दूसरा गन्धर्व विवाह बिन्दुसार 
का चम्पनागरी के ब्राम्हण पुत्री शुभद्रांगी जिन्हें धर्मा भी कहा जाता है  उनके साथ होता है जिससे द्वितीय पुत्र अशोक तथा एक पुत्र और जिसका नाम विट था की प्राप्ति होती है बिन्दुसार का तीसरा विवाह उन्ही के सेनापति मीर खुरासान की पुत्री नूर से  होती है जिससे उन्हें पुत्र स्यामक की प्राप्ति होती है [कुछ उल्लेखो से मिली जानकारी के अनुसार श्यामक रानी नूर और बिन्दुसार के ज्येष्ठ भ्राता जस्टिन का पुत्र था ] फिर बिन्दुसार का चौथा विवाह सुब्रशी से होता है जिससे उन्हें पुत्र द्रुपद की प्राप्ति होती है बिन्दुसार के और भी विवाहों का उल्लेख कुछ किताबो में पाया जाता है और कई पुत्रो के होने की बात कही जाती है क्युकी कुछ जगह बताया गया है की अशोक जब सम्राट बना था तो उसने अपने ९९ भाइयो की हत्या की थी तब जाकर वह राजा बना था हलाकि इस बात की पुष्टि नही हो पायी है |

अब आते है विन्दुसार के शासन काल की कुछ घटनाओ पर

चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद सिहासन में बिन्दुसार आसीन होते है परन्तु बिन्दुसार के शासन काल में हमेशा कोई न कोई षड्यंत्र इनके परिवार द्वारा ही रचे जाते थे जैसे उनकी सौतेली माँ और सौतेले भाई द्वारा क्युकी उनका सौतेला भाई जस्टिन बिन्दुसार से ज्येष्ठ होने के बाद भी सिंहासन का अधिकारी नही बना क्युकी विष्णुगुप्त द्वारा उत्तराधिकारी सदैव मौर्यवंश का ही होना चाहिए जबकि जस्टिन की माँ हेलना यूनानी थी इस लिए ज्येष्ठ होने के बाद भी जस्टिन को सम्राट नही बनाया जाता है बल्कि अनुज होने के बाद भी बिन्दुसार को ही राज्य सिहांसन का उत्तराधिकारी माना जाता है इस बात का आक्रोष सदैव हेलना और जस्टिन के मन में रहता है और ये यूनान की सहायता से कई बार विन्दुसार को ख़त्म करने की योजना बनाते है परन्तु हमेशा विष्णुगुप्त द्वारा बिछाए गए गुप्तचरों की जाल में फस कर नाकाम हो जाते थे |
विन्दुसार का प्रथम विवाह होता है और एक पुत्र होता है जिसका नाम शुशीम रखा जाता है उसके उपरांत एक बार सम्राट चम्पनागरी आखेट के लिए जाते है उस आखेट में राजमाता हेलना तथा बड़े भाई जस्टिन द्वारा विन्दुसार को मारने का षड्यंत्र रचा जाता है जिसमे विन्दुसार की जगह उनके सेनापति मीर खुराशन के पुत्र की हत्या हो जाती है और विन्दुसार बुरी तरह से आहत हो जाते है  और ऊँची खायी से जल प्रपात में गिर जाते है हेलना द्वारा भेजे गए सैनिको को प्रतीत होता है की बिन्दुसार मारे गये है और वो ये बात हेलना को बताते है |  हेलना द्वारा राज्य में उपद्रव मचवा दिया जाता है जिससे शीघ्र ही नए सम्राट की नियुक्ति की जाये और हेलना का पुत्र जस्टिन राज्य सिंघासन पर बैठे और इधर सम्राट बिन्दुसार को चम्पनागरी की एक ब्राम्हण की पुत्री द्वार औषधि देकर ठीक कर दिया जाता है और सम्राट बिन्दुसार उसी ब्रम्हण पुत्री अर्थात शुभद्रांगी से गन्धर्व विवाह कर लेते है | विष्णुगुप्त और सेनापति मीर खुरासान द्वारा सम्राट के जीवित होने का पता लगाया जाता है | और जैसे पता चलता है की विन्दुसार जीवित है तो उनको पुनः मगध को सुरक्षित करने हेतु सिहासन पर बैठाया जाता है फिर सम्राट का तीसरा विवाह सेनापति मीर खुराशन के पुत्री नूर के साथ होता है हलाकि कुछ मायनों में ये विवाह एक मात्र गठबंधन के आधार पर होता है क्युकी खुराशानी सेना काफी बड़ी और सक्षम थी इस बजह से मीर खुराशन की बात सम्राट को रखनी पड़ी और तीसरा विवाह नूर से हुआ | कुछ जगह उल्लेख मिलता है की नूर और सम्राट के रिश्ते सही मायने में न होने के कारन नूर और जस्टिन एक दुसरे से प्रेम करने लगे थे और उनका पुत्र श्यामक था | सम्राट के प्रेम को लेकर नूर सदैव एक चिढ की भावना रखती थी क्युकी सम्राट अपनी सभी रानियों में दूसरी रानी अर्थात शुभद्रांगी को अधिक प्रेम करते थे जबकि वो उस समय वन में अपने पिता के साथ निवास करती थी | यहा तक उल्लेख मिलता है की रानी नूर ने अपने पिता के माध्यम से शुभद्रांगी को कई बार हत्या करवाने की भी साजिस रची परन्तु वो सफल नही हो पायी | शुभद्रांगी से सम्राट को पुत्र अशोक की प्राप्ति हुई परन्तु ये बात सम्राट को १२ बर्ष के उपरांत पता चली जब विष्णुगुप्त द्वारा इस बात से अवगत कराया गया क्युकी शुभद्रांगी अग्यातवास में थी उनके पिता की हत्या नूर के पिता मीर खुराशन द्वारा कर दी गयी थी और शुभद्रांगी को भी जान से माँरने का प्रयास किया गया इस कारण बस शुभद्रांगी अपने पुत्र अशोक के साथ वन में निवाश करती थीसम्राट विन्दुसार की प्रथम पत्नी चारुमित्रा जादू टोटके में विश्वास रखती थी इस लिए अधिकतम समय वो सिर्फ काला जादू को सिध करने में समय व्यतीत करती थी कहा जाता है की वो अपने पुत्र शुशीम को राज सिघासन में बैठाने के लिए ऐसा करती थी और यही अक ऐसा लालच था जिसकी बजह से चारुमित्र अपने मृत्य्य का कारण स्वम बनी थी और वो अपने पति को भी मारने का प्रयास कई बार शुशीम तथा खल्लटक के साथ मिल कर चुकी थी |






बिन्दुसार के परिवार के सदस्य 
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   चन्द्रगुप्त मौर्य
        पत्नीपत्नी
‖हेलना‖    ‖दुर्धरा‖
  ↓पुत्र↓       ↓पुत्र
‖जस्टिन‖  ‖बिन्दुसार
                  ↓पत्नी
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∥चारुमित्रा∥            ‖शुभाद्रान्गी‖            ‖नूर‖             ‖शुब्रशी‖
    ↓पुत्र↓                पुत्र↓                 पुत्र↓               पुत्र
  ‖शुषीम‖             ‖अशोक‖ ‖विट‖       ‖श्यामक‖           ‖द्रुपद‖
  ↓पत्नी↓                पत्नी↓ 
   ‖तारा‖                पत्नी↓ 
                ↓~~~~~~↓~~~~~~~↓~~~~~~~~~~↓
           ‖देवी‖     ‖कौरवकी‖     ‖पद्मावती‖     ‖तिष्यरक्षिता‖
           
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बिन्दुसार धर्मपरायण सम्राट थे और सम्राट के धर्म का पालन भी बखूबी करते थे वो सदैव आचार्य चाडक्य के बनाये नियमो पर चलते थे परन्तु उनकी पहली पत्नी तथा पहला पुत्र दोनी ही क्रोधी प्रकृति के थे और सदैव ही सम्राट के दुखो का कारन बनते थे कहा जाता है की सम्राट का बड़ा पुत्र शुशीम इस कदर सम्राट बनने के लिए उतावला था की उसने कई प्रयास किये थे बिन्दुसार को मारने तक का परन्तु हमेसा उसे निराशा ही हाँथ लगी थी जब चाडक्य द्वारा अशोक तथा उसकी माँ शुभ्द्रंगी को राजमहल लाया गया था तब से शुशीम के सम्राट बन्ने की एक और बाधा पैदा हो गयी थी क्युकी अशोक निपुण और शुशीम से ज्यादा प्रभावशाली और लोकप्रिय था ये बात शुशीम तथा उसकी माँ को हमेशा खटकती थी  इससे नुजत पाने के लिए उन्होंने कला जादू का भी सहारा लिया परन्तु आचार्य चाडक्य ने काला जादू को निष्प्रभाव कर दिया | कहा जाता है की यूनानी समर्थन साथ लेकर हेलना और उसके पुत्र जस्टिन ने आक्रमण का स्वांग रचा था उन्होंने जस्टिन के विवाह की योजना बनायीं थी जिसमे एक लक्श्याग्रह का निर्माण करवाया था जिसमे योजना थी की जैसे ही विवाह सम्पन्न होगा उसके तुरंत बाद महल में आग लगा दिया जायेगा जिससे समस्त मौर्य बंश जल कर भस्म हो जायेगा और उन्होंने एक गुप्त सुरंग का भी निर्माण करवाया था जिससे यूनानी लोग उस सुरंग से बाहर निकल सके परन्तु  आचार्य चाडक्य और अशोक की बुद्धिमानी की बजह से उनकी ये योजना असफल रही और पकडे जाने के भय से हेलना ने सारा आरोप अपने पुत्र जस्टिन के सर मढ़ दिया और अपने हांथो से जस्टिन को मृत्युदंड देकर खुद को निर्दोष साबित कर लिया | अब हेलना के पास मौर्य बंश को ख़त्म करने की एक और बजह हो चुकी थी क्युकी वो अपने पुत्र की मृत्य का बदला लेना चाह रही थी और हेलना को पता भी चल चूका था की श्यामक उनके पुत्र जस्टिन का पुत्र है इस लिए हेलना श्यामक को सम्राट बनाना चाहती थी| 
आचार्य चाडक्य की भी हत्या कर दी गयी (चाडक्य की हत्या हुई थी या स्वाभाविक मृत्यु ये अभी तक सिद्ध नही हो पाया है इसमें अलग अलग राय है कुछ जगह बताया जाता है की कुछ कारणों बश आचार्य चाडक्य ने भोजन पानी का त्याग कर दिया था और दुर्वल हो कर उनकी मृत्यु हो गयी थी जबकि कुछ जगह बताया जाता है की उनकी कुटीया में दुश्मनों द्वार आग लगा दी गयी थी और उनकी जल क्र मृत्यु हो गयी थी परन्तु TV में दिखाए गये चक्रवर्ती अशोक सम्राट में बताया जाता है की महामात्य खाल्लातक द्वारा उन्हें किसी आवश्यक सूचना दने हेतु महल के बाहर एक घास की बनी कुटिया में ले जाया जाता है और वाही पर पहले से मौजूद राजमाता हेलना तथा महारानी चारुमित्र और उनका पुत्र शुशीम और श्यामक जो की सम्राट की तीसरी पत्नी नूर का पुत्र था वो भी मौजूद था  हेलना, चरुमित्रा,शुशीम, श्यामक,महामात्य खाल्लाटक ने मिल कर खंजर से आचार्य चाडक्य की हत्या कर दी थी और कांश की बनी झोपड़ी में आग लगा दी थी ) परन्तु साक्ष्यो के अभावो के कारण आचार्य चाडक्य के हत्यारों को कोई सजा नही हो पाई थी किन्तु उस दिन अशोक ने सौगंध ली थी की वो अपने गुरु के हत्यारों को खुद दण्डित करेगा और अंत में उसने ऐसा किया भी था | अब हेलना के बुजुर्ग होते शरीर में अपने कार्य को लक्ष्य तक पहुचाने में असमर्थता सी दिखायी देने लगी थी इस लिए हेलना ने एक योजना बनायीं उस योजना में उसने चारुमित्र तथा महामात्य खाल्लातक के साथ मिल कर खुद की मृत्यु का स्वांग रचती है और सम्राट से अपने पार्थिव शरीर को जमीन में गाड़ने का वचन ले लेती है  और वह एक ऐसी औषधि का सेवन क्र लेती है जिससे ह्रदय की गति न के बराबर हो जाती है परन्तु इन्सान मरता नही है बीएस फिर क्या था जैसे ही हेलना के पार्थिव को जमीन में दफनाया जाता है वह से एक सुरंग रहती है जिसके माध्यम से हेलना महल के बाहर तक आ जाती है खा जाता है की दस बर्षो तक वह कोंड़ना नाम से मगध में अवैध कर वसूलती है और अपने नाम का खौफ बना क्र रहती है परन्तु अपनी पहचान छुपा कर रखती है उसके दो समर्थक रहते है जो उसके लिए काम करते है उनका नाम उत्तर और दक्शिण रहता है |  अशोक को सम्राट अपने सम्राज्य से निष्कासित कर देते  है क्युकी अशोक के ऊपर अपने सौतेले भाई द्रुपद को माँरने का आरोप सिद्ध हुआ था जबकि हत्या शुशीम द्वारा की गयी थी परन्तु साक्ष्यो के आभाव कारन अशोक के ऊपर आरोप सिद्ध हो जाता है और उसे देश निकाला बिन्दुसार द्वारा सजा के रूप में दे दिया जाता है | अशोक के साथ उसकी माँ भी सब कुछ छोड़ कर अपने दुसरे नवजात शिशु के साथ वन को चली जाती है|

अशोक सम्राट बिन्दुसार और उनकी दूसरी पत्नी शुभाद्रंगी (रानी धर्मा ) के पुत्र थे| अशोक का आरम्भिक जीवक काफी कष्ट पूर्ण रहा है क्युकी रानी धर्मा चम्पानगर की ब्राम्हण पुत्री थी और सम्राट बिन्दुसार ने उनसे गन्धर्व विवाह किया था | जब अशोक गर्भ में थे तो कई बार सम्राट की तीसरी पत्नी के पिता अर्थात सम्राट के सेनापति मीर खुराशन ने रानी धर्मा को जान से मारने की कोसिस किये थे परन्तु भाग्यबश हर बार अपने प्राण बचाने में सफल रही इस कारण बश रानी धर्मा बारह वर्षो तक अपने पुत्र अशोक के साथ बन में रहा करती थी | जब आचार्य चाद्क्य को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने रानी धर्मं को और उनके पुत्र को राजमहल लाये राजमहल में आने के बाद अशोक का जीवन और भी कष्टपूर्ण रहा क्युकी राजमहल में अन्य भाई से अशोक की स्पर्धा काफी कड़ी थी और इस कारण अपने आप को प्रमाणित करना काफी कठिन होता था परन्तु अशोक ने कभी हार नही मानी और वह हमेशा विजयी होता रहा अशोक का ज्येष्ठ भाई सुशीम उस समय तक्षशिला का प्रान्तपाल था। तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे। इससे वह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त था। सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण भी उस क्षेत्र में विद्रोह पनप उठा। राजा बिन्दुसार ने सुशीम के कहने पर राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ भेजा। अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने उपद्रव खत्म कर दिया और विद्रोह बिना किसी युद्ध के खत्म हो गया। हालाकि यहाँ पर विद्रोह एक बार फिर अशोक के शासनकाल में हुआ थापर इस बार उसे बलपूर्वक कुचल दिया गया। अशोक की इस प्रसिद्धि से उसके भाई सुशीम को सिंहासन न मिलने का खतरा बढ़ गया कुछ कारणों बश तथा अन्य सौतेलो भाईयो के आरोपों के चलते अशोक को देशनिकाला सम्राट बिन्दुसार के द्वारा दे दिया जाता है और फिर अशोक पूरी तरह से चंड के रूप में परिवर्तित हो जाते है और काफी बलसाली और गुस्सेवाला स्वाभाव हो जाता है अशोक का किसी तरह दस वर्षो के बाद अशोक फिर से मगध वापस आते है और फिर से सुरु होती है सिंहासन की राजनीती |
 एक तरफ अशोक का बड़ा भाई शुशीम शिहासन के लिए किसी की भी जान लेने के लिए आतुर रहता है दूसरी तरफ अशोक का छोटा सौतेला भाई श्यामक भी शिहासन के लिए षड्यंत्र रच रहा था श्यामक को यूनानी सरक्षण प्राप्त था क्युकी श्यामक का पिता स्म्भाब्तः जस्टिन था जो की सेलुकश निकेटर की पुत्री हेलना अर्थात चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी का बेटा था इस बजह से उसे यूनानी संरक्षण भी प्राप्त था परन्तु यूनानी संरक्षण प्राप्त होने के बाद भी श्यामक कभी अशोक से विजयी नही होता है | अशोक ने शिलालेख में अपनी पत्नी में सिर्फ कौर्वकी का उल्लेख किया है जबकि अशोक की पहली पत्नी देवी थी जिससे अशोक को पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा की प्राप्ति हुई थी अशोक की दूसरी पत्नी कौरावाकी बनी थी जो की कलिंग की राजकुमारी थी जिससे अशोक को तीवर नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी अशोक की तीसरी पत्नी पद्मावती थी जिससे कुणाल नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी जो मौर्य सम्राज्य में शाशन भी किया था अशोक के बाद अशोक की एक और पत्नी का भी उल्लेख कुछ जगह पाया गया है जिसका नाम तिष्यरक्षिता बताया जाता है खा जाता है की तिष्यरक्षिता अशोक से उम्र में काफी कम थी परन्तु रूप की देवी और कामातुर थी इसी कारण अशोक ने तिष्यरक्षिता से विवाह कर लिया था | अशोक के पहले विवाह के उपरांत सब कुछ ठीक चल रहा था और सिंहासन के लिए होड़ चालू थी अचानक से अशोक के सौतेले भाई शुशीम और श्यामक ने मिल कर अशोक की माता की हत्या कर देते है बीएस फिर उस दिन अशोक फिर से चंड में परिवर्तित हो जाता है और उसने अपने दोनों भाइयो की निर्ममता से हत्या कर देता है कहा जाता है की अशोक ने अपने अन्य कई सौतेले भाईयो की हत्या कर के सम्राट बना था | अशोक का एक  एक ही सिधांत था की ध्वज हो और एक और शास्श्क हो सम्राट अशोक अखंड भारत का निर्माण करना चाहते है और अशोक ऐसा करने में सक्षम भी थे और उहोने ऐसा किया भी अशोक ने अंतिम लडाई कलिंग से लड़ी या फिर कह सकते है की वो अशोक की अंतिम लडाई थी क्युकी कहा जाता है की अशोक ने उसमे बहुत नरसंहार किया था और लाखो लोगों की जाने गयी थी कलिंग युद्ध में १ लाख ५० हजार व्यक्‍ति बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिए गये१ लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। सम्राट अशोक ने भारी नरसंहार को अपनी आँखों से देखा।  कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया। उनका हृदय मानवता के  प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया। उन्होंने युद्धक्रियाओं को सदा के लिए बन्द कर देने की प्रतिज्ञा की। यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म विजय का युग शुरू हुआ। उन्होंने महान बौद्ध धर्म को अपना धर्म स्वीकार किया। सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार सम्राट अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्ष में निगोथ नामक भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा दी गई थी। तत्पश्‍चात्‌ मोगाली पुत्र निस्स के प्रभाव से वे पूर्णतः बौद्ध हो गये थे। दिव्यादान के अनुसार सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है। सम्राट अशोक अपने शासनकाल के दसवें व में सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी। तदुपरान्त अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थी तथा लुम्बिनी ग्राम को करमुक्‍त घोषित कर दिया था। बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद उसने उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया। उसने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया। उसने ब्राह्मणों एवं अन्य सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया। और जनकल्याण के लिए उसने चिकित्सालयपाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य सम्राज्य के महान सम्राट थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर ही रहे हैं।

सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है।सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ कहा जाता हैजिसका अर्थ है - ‘सम्राटों का सम्राट’, और झंडा हो और एक रास्त्र हो यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है।सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जानाजाता है। सम्राट अशोक के संदर्भ के स्तंभ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है।इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी एन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिलजाती है सम्राट अशोक प्रेमसहिष्णूतासत्यअहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थेइसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है।सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे।सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिसमें तक्षशिलानालंदाविक्रमशिलाकंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे  इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे।ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे।

अशोक के बाद कुछ वर्षो तक मौर्य शाशन तो चला परन्तु वो दम नही था और धीरे धीरे मौर्य वंश का पतन हो गया सम्राट अशोक के बाद निम्नलिखित शाशको ने शाशन किया 

कुणाल                             232-228 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
दसरथ                             228-224 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
सम्प्रति                             224-215 ईसा पूर्व (9 वर्ष)
शालिसुक                         215-202 ईसा पूर्व (13 वर्ष)
देववर्मन                           202-195 ईसा पूर्व (7 वर्ष)
शतधन्वन                        195-187 ईसा पूर्व (8 वर्ष)
ब्रहद्रथ                             187-185 ईसा पूर्व (2 वर्ष)   


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