चक्रवर्ती अशोक सम्राट



चक्रवर्ती अशोक सम्राट
अशोक सम्राट बिन्दुसार और उनकी दूसरी पत्नी शुभाद्रंगी (रानी धर्मा ) के पुत्र थे| अशोक का आरम्भिक जीवक काफी कष्ट पूर्ण रहा है क्युकी रानी धर्मा चम्पानगर की ब्राम्हण पुत्री थी और सम्राट बिन्दुसार ने उनसे गन्धर्व विवाह किया था | जब अशोक गर्भ में थे तो कई बार सम्राट की तीसरी पत्नी के पिता अर्थात सम्राट के सेनापति मीर खुराशन ने रानी धर्मा को जान से मारने की कोसिस किये थे परन्तु भाग्यबश हर बार अपने प्राण बचाने में सफल रही इस कारण बश रानी धर्मा बारह वर्षो तक अपने पुत्र अशोक के साथ बन में रहा करती थी | जब आचार्य चाद्क्य को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने रानी धर्मं को और उनके पुत्र को राजमहल लाये राजमहल में आने के बाद अशोक का जीवन और भी कष्टपूर्ण रहा क्युकी राजमहल में अन्य भाई से अशोक की स्पर्धा काफी कड़ी थी और इस कारण अपने आप को प्रमाणित करना काफी कठिन होता था परन्तु अशोक ने कभी हार नही मानी और वह हमेशा विजयी होता रहा अशोक का ज्येष्ठ भाई सुशीम उस समय तक्षशिला का प्रान्तपाल था। तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे। इससे वह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त था। सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण भी उस क्षेत्र में विद्रोह पनप उठा। राजा बिन्दुसार ने सुशीम के कहने पर राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ भेजा। अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने उपद्रव खत्म कर दिया और विद्रोह बिना किसी युद्ध के खत्म हो गया। हालाकि यहाँ पर विद्रोह एक बार फिर अशोक के शासनकाल में हुआ था, पर इस बार उसे बलपूर्वक कुचल दिया गया। अशोक की इस प्रसिद्धि से उसके भाई सुशीम को सिंहासन न मिलने का खतरा बढ़ गया कुछ कारणों बश तथा अन्य सौतेलो भाईयो के आरोपों के चलते अशोक को देशनिकाला सम्राट बिन्दुसार के द्वारा दे दिया जाता है और फिर अशोक पूरी तरह से चंड के रूप में परिवर्तित हो जाते है और काफी बलसाली और गुस्सेवाला स्वाभाव हो जाता है अशोक का किसी तरह दस वर्षो के बाद अशोक फिर से मगध वापस आते है और फिर से सुरु होती है सिंहासन की राजनीती |

 एक तरफ अशोक का बड़ा भाई शुशीम शिहासन के लिए किसी की भी जान लेने के लिए आतुर रहता है दूसरी तरफ अशोक का छोटा सौतेला भाई श्यामक भी शिहासन के लिए षड्यंत्र रच रहा था श्यामक को यूनानी सरक्षण प्राप्त था क्युकी श्यामक का पिता स्म्भाब्तः जस्टिन था जो की सेलुकश निकेटर की पुत्री हेलना अर्थात चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी का बेटा था इस बजह से उसे यूनानी संरक्षण भी प्राप्त था परन्तु यूनानी संरक्षण प्राप्त होने के बाद भी श्यामक कभी अशोक से विजयी नही होता है | अशोक ने शिलालेख में अपनी पत्नी में सिर्फ कौर्वकी का उल्लेख किया है जबकि अशोक की पहली पत्नी देवी थी जिससे अशोक को पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा की प्राप्ति हुई थी अशोक की दूसरी पत्नी कौरावाकी बनी थी जो की कलिंग की राजकुमारी थी जिससे अशोक को तीवर नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी अशोक की तीसरी पत्नी पद्मावती थी जिससे कुणाल नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी जो मौर्य सम्राज्य में शाशन भी किया था अशोक के बाद अशोक की एक और पत्नी का भी उल्लेख कुछ जगह पाया गया है जिसका नाम तिष्यरक्षिता बताया जाता है खा जाता है की तिष्यरक्षिता अशोक से उम्र में काफी कम थी परन्तु रूप की देवी और कामातुर थी इसी कारण अशोक ने तिष्यरक्षिता से विवाह कर लिया था | अशोक के पहले विवाह के उपरांत सब कुछ ठीक चल रहा था और सिंहासन के लिए होड़ चालू थी अचानक से अशोक के सौतेले भाई शुशीम और श्यामक ने मिल कर अशोक की माता की हत्या कर देते है बीएस फिर उस दिन अशोक फिर से चंड में परिवर्तित हो जाता है और उसने अपने दोनों भाइयो की निर्ममता से हत्या कर देता है कहा जाता है की अशोक ने अपने अन्य कई सौतेले भाईयो की हत्या कर के सम्राट बना था | अशोक का एक  एक ही सिधांत था की ध्वज हो और एक और शास्श्क हो सम्राट अशोक अखंड भारत का निर्माण करना चाहते है और अशोक ऐसा करने में सक्षम भी थे और उहोने ऐसा किया भी अशोक ने अंतिम लडाई कलिंग से लड़ी या फिर कह सकते है की वो अशोक की अंतिम लडाई थी क्युकी कहा जाता है की अशोक ने उसमे बहुत नरसंहार किया था और लाखो लोगों की जाने गयी थी कलिंग युद्ध में १ लाख ५० हजार व्यक्‍ति बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिए गये, १ लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। सम्राट अशोक ने भारी नरसंहार को अपनी आँखों से देखा।  कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया। उनका हृदय मानवता के  प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया। उन्होंने युद्धक्रियाओं को सदा के लिए बन्द कर देने की प्रतिज्ञा की। यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म विजय का युग शुरू हुआ। उन्होंने महान बौद्ध धर्म को अपना धर्म स्वीकार किया। सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार सम्राट अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्ष में निगोथ नामक भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा दी गई थी। तत्पश्‍चात्‌ मोगाली पुत्र निस्स के प्रभाव से वे पूर्णतः बौद्ध हो गये थे। दिव्यादान के अनुसार सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है। सम्राट अशोक अपने शासनकाल के दसवें व में सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी। तदुपरान्त अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थी तथा लुम्बिनी ग्राम को करमुक्‍त घोषित कर दिया था। बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद उसने उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया। उसने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया। उसने ब्राह्मणों एवं अन्य सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया। और जनकल्याण के लिए उसने चिकित्सालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य सम्राज्य के महान सम्राट थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर ही रहे हैं।

सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है। सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ कहा जाता हैजिसका अर्थ है - ‘सम्राटों का सम्राट’, और झंडा हो और एक रास्त्र हो यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। सम्राट अशोक के संदर्भ के स्तंभ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी एन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेमसहिष्णूतासत्यअहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थेइसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है। सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे। सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिसमें तक्षशिलानालंदाविक्रमशिलाकंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे। ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे।

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