हड़ताल.....?

हड़ताल का हड़ताल तो भूतकाल में भी हड़ताल मचाया था।
जब अच्छा युग था तो ज़िद भगवान से होती थी जो कि जायज और लोभमुक्त होती थी और आज के युग मे ज़िद किससे हो रही है पता ही नही चलता क्यों कि जिनसे ज़िद करे वो खुद अगले पल हड़ताल में होते है।
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पर हड़ताल है गज़ब चीज़ मतलब बिना खर्च के सुर्खियों में आना वैसे तो आजकल आप बलात्कार करके भी अच्छा नाम कमा सकते है।
बस बर्तमान सत्ता पार्टी में आपकी पैठ अच्छी खासी होनी चाहिए।


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सवाल जिंदगी जीने का नही है.....?

हड़ताल गांधी जी के समय मे शांति और अहिंसा के साथ देश को अंग्रेजो के बंधन से मुक्त कराने के लिए हुआ करती थी
परन्तु अब तो हड़ताल कभी आरक्षण कायम रखने के लिए या आरक्षण खत्म करने के लिए और कभी बलात्कारी को सज़ा दिलवाने के लिये हो रही है।
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सुन के इस बात को शर्म भी आती है और क्रोध भी क्योंकि जिस देश मे अपराधी को सज़ा दिलाने के लिए हड़ताल का सहारा लेना पड़े उस देश के कानून को मिट्टी में दफन कर देना ही उचित है।

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पर हमारा क्या हमें तो भारत बंद में शरीक होना है कुछ बसों को जलाने का श्रेय भी तो चाहिए हमे ।
हम स्वतंत्र भारत के नागरिक है हमे पूरा अधिकार है किसी बेकसूर को भारत बंद के नाम पे पीटने का ।
हम बस इतना जानते है कि समाचार में हमारी फ़ोटो भगवे रंग की तौलिये के साथ मारपीट करते हुए आये फिर चाहे वो मारपीट किसी गरीब से हो या फिर किसी बेकसूर से।

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और अगर इतना कुछ करने के बाद भी अगर हम सुर्खियों में या नेता बनने के काबिल नही हुए तो सीधे भूख हड़ताल में उतर आएंगे।
भले ही वो भूख हड़ताल भर पेट खाना खाने के बाद ही क्यों न हो।
बस हमे अपना अस्तित्व बनाये रखना है फिर चाहे वो अस्तित्व कितनी भी आपराधिक गतविधियों से हो के ही क्यों ना गुजर हो।
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वैसे भूख हड़ताल का असली फायदा केजरीवाल जैसे नेता ने उठाया क्योंकि भूखहड़ताल किया किसी और ने और फायदा ले गया कोई और ।
पर राजनीति का असली मतलब भी तो यही है।
हड़ताल कई प्रकार के भारत मे पाए जाते है पर प्रमुख रूप से इस समय प्रचलन में भूख हड़ताल ही है ।
क्योंकि ये आसान भी है और भरा पेट किसी को दिखता भी नही।
अन्य हड़ताल इस समय ज्यादा चलन में नही है क्योंकि  फैशन तो अभी भूख हड़ताल का ही चल रहा है ।
पर यकीनन हमारे नेता अन्य हड़ताल का भी ठेका जल्दी ही लेंगे।

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