राजनीति.....?


सुनने में जितना धनवान लगता है ये शब्द अंदर से उतना ही खोखला होता है ये शब्द ।
क्योंकि भले ही लोगो के मन मे ये सवाल आता हो की मजे तो राजनीति में है पर उन्हें नही पता पापी भी इंसान को राजनीति ही बनाती है।
 राजनीति घर की हो या समाज की दोनों ही जानलेवा होती है।
धोखा छल कपट झूठ का संचय है ये राजनीति।



हमे भूलना नही चाहिए कि महान राजनीतिज्ञ आचार्य चाँणक्य की मौत में भी राजनीति ही थी।
देखने का नजरिया बदल सकता है । 
परंतु राजनीति का सत्य नही क्योंकि जहाँ सच है वह राजनीति का कोई स्थान नही है!
आजकल तो राजनीति सत्ता में सिमट कर वही अत्याचार को नई ऊंचाई देने में तुली है। 
जब भी मौका मिला विरोध प्रदर्शन सुचारू रूप से शुरू हो जाता है
कोई ऐसे अनशन में आगे होता है जैसे किसी ने उनके नाम से उनका सरनाम ही छीन लिया हो।
मतलब सिर्फ और सिर्फ विरोध ।
और शाशक तो ऐसे घमण्ड में जीने लगते है कि जैसे ईश्वर से भी उनके अच्छे खासे रिश्ते बन चुके हों।
पता नही अच्छे काम करने के लिए सत्ता का साथ होना क्यों आवश्यक है।
जनता के इतने बड़े शुभचिंतक वास्तव में जनता के मातापिता भी नही होंगे जितना हमारे राजनेता हुआ करते है।
वो बात मायने नही रखती की इस चिंता की समयावधि सिर्फ चुनावो के समय तक ही होती है।
पता नही कब तक सत्ता की राजनीति और ऐसे राजनीतिज्ञ रहेंगे
और ये सत्य है की जब शासक से मतभेद हो तो जनता कभी खुश नही रह सकती।।

पर बात सिर्फ सत्ता की नही है बात हर बात में राजनीति की है जिसे हम सब अपना कर्तव्य समझने लगे है।
किसी ने ठीक ही कहा है राजनीति कोई खेल नही ये सबसे गंभीर व्यवसाय है।।।