अनुशासित होना अपने आप मे महान कार्य कर लेने के बराबर है। क्युकी अनुशासन के माध्यम से हम वो सब कुछ हासिल कर सकते है जिसकी हमारे जीवन मे जरूरत और उपयोगिता है। परन्तु अब अनुशासन के नाम पर लोग व्हाट्सअप और फेसबुक को जरिया बना कर उसमें सक्रिय होना ज्यादा पसंद करते है। हो सकता है कि ये सब ज्यादा अनुशासित होने के प्रदर्शन का हिस्सा हो परन्तु अनुशासन की परिभाषा ये कभी नही रही।
स्कूलों से हम अनुशासित जीवन का पाठ सीखते आये है पर उसके उपयोगिता को हम असल जीवन मे समझ ही नही पाते और न ही उस जीवन मे उतार पाते है। अधिकतम हम अनुशासित होने का प्रदर्शन मात्र करते है।
युग बदल रहा है, सोच में पश्चिमी सभ्यता राज़ कर रही है परंतु क्या हम अपने संस्कारों को साथ लेकर उन सभ्यताओं को नही अपना सकते क्या या फिर अपनाना ही नही चाहते ।
सच जो भी हो परन्तु जिसने अपनी पहचान को छुपाया और संस्कारों से पीछे हटा मुझे नही लगता कि उसने अपने से जुड़े लोगों को कभी खुश किया ।।।
आत्मा से अनुशासित बनिये दिखावा तो हर कोई कर लेता है पर प्राकृतिक रूप से अनुशासित होने का मजा ही कुछ और है।
संस्कार और सभ्यता यही हमारी पहचान है
और ये हमारे अनुशासन से ही दिखाई देती है।।।।
और ये हमारे अनुशासन से ही दिखाई देती है।।।।