आत्मग्लानि का अर्थ है जीते जी मृत्यु को महसूस करना।
मृत्यु क्षणिक कष्ट का आभाष कराती है परंतु आत्मग्लानि प्रत्येक समय मृत्यु से परिचय कराती है।
बिना किसी कारण के भी सम्भव है किसी ऐसे कार्य का अनजाने में हो जाना जिसकी कल्पना कर पाना असंभव हो।
हर सम्भव प्रयत्न करना आवश्यक होता है बात की जड़ तक पहुचने के लिए क्योंकि अनजाने में भी भूल होना संभव है।
और भूल आत्मग्लानि की पोटली होती है ।
जिसे सुधार करना अत्यंत कठिन होता है
विचार करिये आखिरी बार आत्मग्लानि कब हुई और क्यों हुई उसकी बजह क्या थी ।
उत्तर आपके सामने है अब क्या दुबारा ऐसी भूल या इस तरह की भूल करना उचित होगा
नही ना.....
तो फिर बिना आत्मविचार किये फैसले कभी मत करिए।।।।।
मृत्यु क्षणिक कष्ट का आभाष कराती है परंतु आत्मग्लानि प्रत्येक समय मृत्यु से परिचय कराती है।
बिना किसी कारण के भी सम्भव है किसी ऐसे कार्य का अनजाने में हो जाना जिसकी कल्पना कर पाना असंभव हो।
हर सम्भव प्रयत्न करना आवश्यक होता है बात की जड़ तक पहुचने के लिए क्योंकि अनजाने में भी भूल होना संभव है।
और भूल आत्मग्लानि की पोटली होती है ।
जिसे सुधार करना अत्यंत कठिन होता है
विचार करिये आखिरी बार आत्मग्लानि कब हुई और क्यों हुई उसकी बजह क्या थी ।
उत्तर आपके सामने है अब क्या दुबारा ऐसी भूल या इस तरह की भूल करना उचित होगा
नही ना.....
तो फिर बिना आत्मविचार किये फैसले कभी मत करिए।।।।।