आलस्य.....?


आलस्य में बड़े मतभेद है कोई कहता है आलस्य इंसान को पीछे धकेलता है और कोई कहता है आलस्य इंसान को कभी अपराधी नही बनने देता ।
दोनो बाते पूर्णतः सही है क्योंकि आलस्य वास्तव में इंसान के लिए आवश्यक है ।

पर तब तक जब तक कि आलस्य जीवन मे आलसी प्रभाव ना डाले।
खुद को आलस्य से बचाने के लिए कोई आयुर्वेदिक दवाओं का सहारा नही लिया जा सकता बस आलस्य है जब भी मन करे गले लगा लेने में ही भलाई है।
पर असल जिंदगी में आलस्य भले ही फायदा कराये या न कराये परन्तु नुकसान तो कर के ही मानती है ।
क्योंकि आलस्य आराम की जननी है ।
बिना आलस्य के आराम नही किया जा सकता ।
और अच्छे कामो में या जरूरी कामो में आलस्य बिना बुलाये ही प्रगट हो जाती है और अपना अधिकार अपने गिरफ्त में ले के ही दम लेती है।
हम मजबूर हो जाते है आलस्य को पनाह देने के लिए पर कुछ चालक लोग खुद के द्वारा दिये गए पनाह को बिचार करने का नाम भी दे देते है।
अब पता नही आलस्य के साथ कौन सा बिचार विमर्श किया जाता है ।
पर गौर करने वाली बात है कि बुरे कार्यो को करने में आलस्य जरा सा भी साथ नही निभाती खुद किनारे हो कर आंख बंद कर लेना कोई आलस्य से इन परिस्थितियों में सीखे।
अब समझ से बाहर है कि आलस्य में मूर्खता है या आलसी में।
क्योंकि आलस्य पे बिचार करना उस पर लिखना या बोलना काफी सरल है पर आलस्य से बैर करना मामूली विद्रोह नही होता ।
परिणाम सुख के विरोध में भी हो सकते है जो कि किसी को भी मंजूर नही क्योंकि इंसान सुख से दूर होने के लिए थोड़े ही दिन रात मेहनत करता है।
आलसी बने रहिये परन्तु खुद के हानि का कारण कभी नही और आलस्य हानि पहुचाने और विकाश में बाधा डालने के लिए ही हम सब के अंदर विराजमान है।।