कहानी बृद्धाश्रम की.....?

                           
अरे सुमन देखना जरा बेटा इन जूतों की आवाज़ मेरे बेटे के जूतों जैसी है कही वो मेरे को लेने तो नही आया है कहते हुए बूढ़ी आंखे अपना आपा खो बैठी और धाराओं के जैसे बह चली।
सुमन- अरे चंदा चाची अगर तुम्हारे बेटे को तुम्हे लेके ही जाना होता तो बृद्धाश्रम में छोड़ के क्यों जाता। सुमन ने भी तंज़ कसते हुए बोला..
चाची आंखों को पोछते हुए गुर्राए सुर में सुमन को बेटे की दरियादिली सुंनाने में खो गयी और सुमन तो जैसे वर्षो से यही सुन सुन के कान को फौलादी बना लिया हो।
सुमन और बूढ़ी चाची की जमती बहुत थी ।
सुमन भी अकेली थी माँ बचपन मे गुज़र गयी और पिता को बीमारी ने अपने आगोश में ले लिया
सुमन अकेले घर मे रहती थी ।
4 घण्टे की बृद्धाश्रम में नौकरी थी खाना बनाने की पर सुमन पूरा दिन यहाँ तक कि रात को भी वही रुक जाती थी।
सबसे खासा लगाव था । सबको चिल्लाती रहती थी और सब पर रौब जमाती रहती।
सुमन को इसी आश्रम में उसे अपना परिवार सा दिखने लगा।
बूढ़ी औरतों को देख कर वो बहुत ज्यादा निराश होती थी ।
पर उसे समझ नही आता था कि माँ बाप इतने बोझिल कैसे हो सकते है ।
जिस माँ ने सब बेटे की खुशी के लिए कुर्बान कर दिया हो और जिस पिता ने बेटे के हसने पर ही हँसा हो वो कैसे आज बेटे का अहित सोच सकते है। और नही सोचा तो फिर ऐसी कौन सी बजह रही होगी जो आज बेटो ने घर तक मे पनाह नही दिया माँ बाप को।
हर रात इसी सवाल का जबाब ढूढ़ते ढूंढते सुमन नींद में गोते लगाती थी।
अब चंदा चाची की आंखों में ताकत भी नही बची थी आंखे बंद न करने का कारण उनका लाडला था जो कि अपनी पत्नी के पल्लू में ऐसे छिपकर बैठा था कि हाल भी माँ का जानना जरूरी नहीं समझता था।
पर चन्दा चाची की बूढ़े शरीर मे आशाओ की जो लौ थी वो एक जवान व्यक्ति से भी बढ़कर थी।
उन्हें विस्वाश था कि उनका बेटा उन्हें लेने आएगा।
और खबर भी मिली थी कि अब तो चंदा चाची दादी भी बन गयी है। अब तो जरूर आएगा बेटा उन्हें बुलाने क्योंकि अभी तो पोते का मुह तक कहाँ देख पाई थी । और तो और पोते के साथ खेलना जो था
पड़ोसी औरतो के साथ गाना भी कहा गा पाई थी नाती के होने की खुशी में।
चन्दा चाची की उम्मीदें सातवे आसमान में थी पर बेटे के आने की कोई आस नही लग रही थी।
पर मज़ाल क्या की बिना अपने बेटे पोते को याद किया बिना चन्दा चाची को नींद भी आ जाय
एक दिन सुबह सुबह सूरज अपनी लौ बिखेर ही रहा था कि अचानक आश्रम में भागदौड़ जैसा माहौल लग रहा था क्योंकि चंदा चाची का शरीर शिथिल सा हो रहा था सुमन ने जल्दी ही गाड़ी में बैठा कर हस्पताल में भर्ती कराया ।
पर चंदा चाची जब भी आंखे खोलती बेटे को ही याद करती।
उनकी ये बेबसी सुमन से देखी नही जा रही थी
काफी सोचने के बाद सुमन ने चाची के बेटे सूरज को फोन मिलाया पर फोन सूरज की पत्नी ने उठाया।
सुमन - मैं सुमन बात कर रही हु चंदा चाची की तबियत बेहद खराब है और वो सूरज से मिलना चाहती है।
सूरज की पत्नी - तो क्या वो सूरज से मिलने से ठीक हो जाएगी उनका इलाज करवाइये और हाँ सूरज अभी कार्यालय के काम से शहर से बाहर गए हुए है और उनको वापस आने में हप्ता भर लग जायेगा।
सुमन - तो आप ही आ जाइये मिल लीजिये पता नही चाची कब तक की साथी है
डॉक्टर भी जबाब दे चुके है शायद आप से मिलकर उन्हें अच्छा लगे और सूरज को भी जल्दी बुला लीजिये
क्योंकि सूरज उनका बेटा है बहुत मानती है चाची सूरज को....
दूर जा कर भी इन्होंने हम सब का पीछा नही छोड़ा इनका तो मर जाना ही सही है सूरज की पत्नी ने बात को बीच मे ही काटते हुए कहा।
सुमन को कुछ भी समझ नही आ रहा था कि वो अब क्या बोले सूरज की पत्नी से ।
आंसुओ को पोछते हुए सुमन चाची के करीब जा कर बैठ गयी
चाची को सब बताना चाह रही थी सुमन की किस तरह तुम्हारे बेटे और बहू के तेवर है तुम्हारे लिए पर चाची बड़ी खुदगर्ज़ निकली बेटे की बुराई सुनती उसके पहले ही जिंदगी और बूढ़े हो गए शरीर को अलविदा कह दिया।