अहमियत.....?

जीवन की कड़वी सच्चाई है कि सामने वाले कि अहमियत का अंदाज़ा सदैव उसके दूर जाने की बाद ही मालुम पड़ता है।
परन्तु ये भी सच है कि अहमियत का अंदाज़ा हो जाने के बाद कितना भी सब कुछ बदलना चाहे बदल नही पाते।
काफी दुख दर्द साथ दे जाती है परिस्थितियां और मजबूरी होती है सहन करना। 

कितना भी सूझबूझ वाला व्यक्ति हो परन्तु अहमियत का अंदाज़ा लगाने में हर कोई कभी न कभी पराजित ज़रूर होता है।
परंतु क्या वो दोषी नही होते जो परिस्थितियो का नाज़ायज़ फायदा उठाने में माहिर होते है और हमारी कमज़ोरी को हमारे दुखो का कारण बनाने से नही चूकते।
क्या आदत या बजह बन कर दूर जाना बुद्धिमत्ता है या फिर जान बूझ कर दुखो के आग में झोंकने का सोच समझा अचूक तरीका।
कैसे कोई विस्वास करे आज की मानसिकता पर क्योंकि आज के लोगो को सुख से ज्यादा दुखो की वजह बनने में आनंद की अनुभूति होने लगी है।
पर सवाल अहमियत को गूढ़ता से समझने की है
क्योंकि जब तक अहमियत आप की समझ में नही आती तब तक आप की नज़र में उसकी कोई कीमत नही और जब समझ मे अहमियत आयी तब तक आपकी कीमत उसकी नज़र में शून्य हो गयी ।
क्या हमारी जिंदगी इसी लुकाछिपी का खेल खेलने के लिए प्रायोजित हुई है।
समय रहते हर व्यक्ति बस्तु की अहमियत को पहचानना उचित होता है अन्यथा फिर पछतावा होने के बाद भी कुछ सुधार पाना असंभव हो जाता है।