किसान परेशान.....?



किसान एक ऐसा दिलचस्प मुद्दा है जिसके विषय मे बात करने पर ऐसा अनुभव होता है जैसे चुनाव सर पे हो।
क्योंकि किसान का ध्यान चुनाव के समय ही आता है
भले ही उसे इस चुनाव क्या किसी भी चुनाव से कोई फायदा नही होता पर मुद्दा बड़ा गंभीर होता है किसान का। बड़ी बात तो ये है कि हम तुरन्त सोफे में बैठ कर निर्णय भी कर लेते है कि घोषणा हो गयी है किसान के पक्ष में अब वोट तो इसी पार्टी को देना है । भले ही वो घोषणा चुनावी हवा का अंग हो हमे क्या हम कौन सा खेती करने जा रहे है।
अरे भाई परेशानी का दूसरा नाम ही किसान है।
और हो भी क्यों न एक तो खुद परेशान दूसरा परिवार को परेशान करेगा और फिर जाकर सरकार को परेशान करेगा। कभी कभी तो आत्महत्या करके दूसरी पार्टी का फायदा भी कर देता है।
अरे किसान बाबू चाहते क्या हो।
दो बैलों के साथ हल चलाते थे ट्रैक्टर और अन्य संसाधनों की सुविधा सरकार ने दे दी पैसा भले ही तुम्हारा खुद का लगे पर व्यवस्थाएँ तो सरकार मुहैया करा ही रही है अब क्या तुम्हें अपने स्विस बैंक का सारा पैसा दे दें क्या।
किसानों को समझ आये या न आये पर सरकार उनके लिए काम कर रही। अरे किसान का मुद्दा हर चुनावी रैली में बोलना मामूली बात थोड़े ही है ।
और वैसे भी किसान तो फ्री में इतने फेमस हो गए कि हर नेता अपने चुनावी रैली में सिर्फ किसान की ही बात करता है।
अब किसान को फायदा हो या न हो वो अलग बात है।
पर किसान भाइयों आप लोग जान मत दिया करो यार और अगर जान देने का इतना मन हुआ करे तो कम से कम एक नेता को तो निपटा के ही जाया करो ।
जब सुनता हूं कि किसान ने की आत्महत्या तो मन बड़ा दुखी होता है और नेताओं के मुह में जूता मारने का दिल करता है पर क्या करे बुज़दिल तो तुम निकले कम से कम एक झूठे नेता को मार के जाते तो कुछ तो भला कर जाते समाज का।
नेता आये और तुम्हे दुलार क्या दिए तुम तो ऐसे पिघले की मोम भी शर्मा जाए फिर किसानों को मैं कैसे मान लू की आज उनकी स्थिति बदत्तर हो रही है।
क्योंकि नेता चुनने में तो उनका भी हाँथ है।
और फसल बोने से लेकर काटने बेचने तक इनका रोना जारी रहता है।
यार हमारी सरकार के पास दूसरा काम भी होता है उन्हें विपक्ष को हराने के लिए गंदी राजनीति की कायाकल्प भी तैयार करनी होती है,
विदेश यात्रा में भी जाना होता है,
ट्विटर में भी बाकायदा समय देना पड़ता है ।
और हाँ तुम्हारे लिए एक लिस्ट तैयार करनी पड़ती है की किसानों को ये सुबिधायें देनी चाहिए
अब तुम्हे क्या समझाए किसान बाबू तुम्हारे लिए नेता मंत्री कितनी मेहनत करते है तुम्हारे आत्महत्या जैसे छोटे मोटे कृत्यों पर कितना अनशन भूख हड़ताल चक्का जाम कितनी बसों को आग के हवाले करना पड़ता है दिन रात मीडिया के सामने सच झूठ को आपस मे बराबर मिलाकर विपक्ष की बुराई करनी पड़ती है आंकड़ा भी नही होगा तुम्हे
और तुम कहते हो नेता हमारे लिए कुछ करते ही नही।
देखो किसान बाबू तुम थोड़ा सा पहनावे को बदलो और थोड़ा सा सोच को भी फेसबुक और ट्विटर पे भी समय बर्बाद करो तब जाकर तुम्हे पता चलेगा कि नेता तुम्हारे लिए कितने परेसान रहते है उनकी एक पोस्ट में लाखो लाइक ऐसे ही नही मिल जाते। बहुत मेहनत करके झूठ को सच मे परिवर्तित करके लिखना पड़ता है भाई और तुम किसानो को ये सब समझ नही आता।
इसलिए प्यारे किसानों सरकार को दोष अब कभी मत देना ।