चन्द्रगुप्त मौर्य
322 ई.पू. में विष्णुगुप्त ने एक बालक की प्रतिभा को पहचान कर उसे एक हजार कषार्पण में खरीदा था जो बालक मोरिय बंश का क्षत्रिय था, तथा उसके पिता मोरिय नगर प्रमुख थे दुर्भाग्य बस इस बालक के पिता जब यह बालक गर्भ में था तो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे इस बालक का जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था तथा एक गोपालक द्वारा पोषित किया गया था। इस बालक का नाम चन्द्रगुप्त मौर्य था । चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म वंश के सम्बन्ध में विवाद है । ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है । चारावाह तथा शिकारी रूप में ही राजा-गुण होने का पता विष्णुगुप्त ने कर लिया था चन्द्रगुप्त मौर्य में | तत्पश्चात् विष्णुगुप्त ने तक्षशिला लाकर सभी विद्या में निपुण बनाया चन्द्रगुप्त मौर्य को ।चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू विष्णुगुप्त की सहायता से धनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दों के अत्याचार व घृणित शासन से मुक्ति दिलाई और देश को एकता के सूत्र में बाँधा और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
322 ई.पू. में विष्णुगुप्त ने एक बालक की प्रतिभा को पहचान कर उसे एक हजार कषार्पण में खरीदा था जो बालक मोरिय बंश का क्षत्रिय था, तथा उसके पिता मोरिय नगर प्रमुख थे दुर्भाग्य बस इस बालक के पिता जब यह बालक गर्भ में था तो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे इस बालक का जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था तथा एक गोपालक द्वारा पोषित किया गया था। इस बालक का नाम चन्द्रगुप्त मौर्य था । चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म वंश के सम्बन्ध में विवाद है । ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है । चारावाह तथा शिकारी रूप में ही राजा-गुण होने का पता विष्णुगुप्त ने कर लिया था चन्द्रगुप्त मौर्य में | तत्पश्चात् विष्णुगुप्त ने तक्षशिला लाकर सभी विद्या में निपुण बनाया चन्द्रगुप्त मौर्य को ।चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू विष्णुगुप्त की सहायता से धनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दों के अत्याचार व घृणित शासन से मुक्ति दिलाई और देश को एकता के सूत्र में बाँधा और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
यह साम्राज्य गणतन्त्र व्यवस्था पर राजतन्त्र व्यवस्था की जीत थी। इस कार्य में अर्थशास्त्र नामक पुस्तक द्वारा विष्णुगुप्त ने सहयोग किया। विष्णुगुप्त के चाणक्य व कौटिल्य अन्य नाम हैं।
आर्यों के आगमन के बाद यह प्रथम स्थापित साम्राज्य था । जिस समय चन्द्रगुप्त राजा बना था भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत खराब थी। उसने सबसे पहले एक सेना तैयार की और सिकन्दर के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ किया। 317 ई. पू. तक उसने सम्पूर्ण सिन्ध और पंजाब प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। अब चन्द्रगुप्त मौर्य सिन्ध तथा पंजाब का एकक्षत्र शासक हो गया। पंजाब और सिन्ध विजय के बाद चन्द्रगुप्त तथा चाणक्य ने धनानन्द का नाश करने हेतु मगध पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में धनाननन्द मारा गया अब चन्द्रगुप्त भारत के एक विशाल साम्राज्य मगध का शासक बन गया। सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस उसका उत्तराधिकारी बना।
वह सिकन्दर द्वारा जीता हुआ भू-भाग प्राप्त करने के लिए उत्सुक था। इस उद्देश्य से 305 ई. पू. उसने भारत पर पुनः चढ़ाई की। चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित कर एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (मकरान), पेरोपेनिसडाई (काबुल) के भू-भाग को अधिकृत कर विशाल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलना (कार्नेलिया) का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया। हलाकि चन्द्रगुप्त की पहली पत्नी दुर्धरा थी कुछ लेखको द्वारा बताया गया है की दुर्धरा की मृत्यु का कारण एक ऐसा विष था जिसे विष्णुगुप्त द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य को नियमित निम्न मात्रा में खिलाया जाता था जिससे शत्रुओ द्वारा किये गए विष प्रयोग का असर चंद्रगुप्त मौर्य के शरीर में न हो | और एक दिन अचानक जो भोजन चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए था उसे दुर्धर द्वारा ग्रहण कर लिया गया और उस समय चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तरादिकारी यानि बिन्दुसार दुर्धरा के गर्भ में थे किसी तरह दुर्धरा का शीश काट कर विष को गर्भ तक पहुचने से रोका गया और विन्दुसार को दुर्धरा का पेट फाड़कर निकाला गया| चन्द्रगुप्त के दो पुत्रो का वर्णन मिलता है एक विन्दुसार जो की उतराधिकारी बना और दूसरा जस्टिन जो की हेलना और चन्द्रगुप्त का पुत्र था जिसे अंततः हेलना द्वारा मृतुदंड दिया गया था खुद को सुरक्षित करने हेतु | चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्चिम भारत में सौराष्ट्र तक प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत शामिल किया। गिरनार अभिलेख (150 ई. पू.) के अनुसार इस प्रदेश में पुण्यगुप्त वैश्य चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था। इसने सुदर्शन झील का निर्माण किया। दक्षिण में चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी कर्नाटक तक विजय प्राप्त की। चन्द्रगुप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कन्धार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा-यमुना का मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात था तथा विन्ध्य और कश्मीर के भू-भाग सम्मिलित थे, लेकिन चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में ईरान से लेकर पूर्व में बंगाल तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक तक विस्तृत किया था। अन्तिम समय में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना राजसिंहासन त्यागकर कर जैन धर्म अपना लिया था। ऐसा कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु जैनमुनि भद्रबाहु के साथ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में संन्यासी के रूप में रहने लगे थे । इसके बाद के शिलालेखों में भी ऐसा पाया जाता है कि चन्द्रगुप्त ने उसी स्थान पर एक सच्चे निष्ठावान जैन की तरह आमरण उपवास करके दम तोड़ा था। वहां पास में ही चन्द्रगिरि नाम की पहाड़ी है जिसका नाम सम्भवतः चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम पे रखा गया था |
भारत में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासनकाल में ही राष्ट्रीय राजनीतिक एकता स्थापित हुइ थी मौर्य प्रशासन में सत्ता का सुदृढ़ केन्द्रीयकरकियागया था मौर्य काल में गणतन्त्र का ह्रास हुआ और राजतन्त्रात्मक व्यवस्था सुदृढ़ हुई| चाणक्य ने राज्य सप्तांक सिद्धान्त निर्दिष्ट किया था, जिनके आधार पर मौर्य प्रशासन और उसकी गृह तथा विदेश नीति संचालित होती थी राजा, अमात्य जनपद, दुर्ग, कोष, सेनाऔर, मित्र |
भारत में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासनकाल में ही राष्ट्रीय राजनीतिक एकता स्थापित हुइ थी मौर्य प्रशासन में सत्ता का सुदृढ़ केन्द्रीयकरकियागया था मौर्य काल में गणतन्त्र का ह्रास हुआ और राजतन्त्रात्मक व्यवस्था सुदृढ़ हुई| चाणक्य ने राज्य सप्तांक सिद्धान्त निर्दिष्ट किया था, जिनके आधार पर मौर्य प्रशासन और उसकी गृह तथा विदेश नीति संचालित होती थी राजा, अमात्य जनपद, दुर्ग, कोष, सेनाऔर, मित्र |
मौर्य साम्राज्य के समय एक और बात जो भारत में अभूतपूर्व थी वो थी मौर्यो का गुप्तचर जाल उस समय पूरे राज्य में गुप्तचरों का जाल बिछा दिया गया था जो राज्य पर किसी बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह की खबर प्रशासन तथा सेना तक पहुँचाते थे।
सैन्य व्यवस्था छः समितियों में विभक्त सैन्य विभाग द्वारा निर्दिष्ट थी। प्रत्येक समिति में पाँच सैन्य विशेषज्ञ होते थे।
पैदल सेना, अश्व सेना, गज सेना, रथ सेना तथा नौ सेना की व्यवस्था थी।
सैनिक प्रबन्ध का सर्वोच्च अधिकारी अन्तपाल कहलाता था। यह सीमान्त क्षेत्रों का भी व्यवस्थापक होता था|
मेगस्थनीज के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना छः लाख पैदल, पचास हजार अश्वारोही, नौ हजार हाथी तथा आठ सौ रथों से सुसज्जित अजेय सैनिक थे| चाणक्य ने अर्धशास्त्र में नगरों के प्रशासन के बारे में एक पूरा अध्याय लिखा है।उसके अनुसार पाटलिपुत्र नगर का शासन एक नगर परिषद द्वारा किया जाता था जिसमें ३० सदस्य थे ये तीस सदस्यपांच=पाच सदस्यों वाली छः समितियों में बंटे होते थे। प्रत्येक समिति का कुछ निश्चित काम होता था।पहली समिति का काम औद्योगिक तथा कलात्मक उत्पादन से सम्बंधित था इसका काम वेतन निर्धारित करना तथा मिलावट रोकना भी था दूसरी समिति पाटलिपुत्र में बाहर से आने वाले लोगों खासकर विदेशियों के मामले देखती थी।तीसरी समिति का ताल्लुक जन्म तथा मृत्यु के पंजीकरण से था चौथी समिति व्यापार तथा वाणिज्य का विनिमयन करती थी।इसका काम निर्मित माल की बिक्री तथा पण्य पर नज़र रखना था।पाँचवी माल के विनिर्माण पर नजर रखती थी तो छठी का काम कर वसूलना था।नगर परिषद के द्वारा जनकल्याण के कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार के अधिकारी भी नियुक्त किये जाते थे,जैसे सड़कों, बाज़ारों, चिकित्सालयों, देवालयों, शिक्षा,संस्थाओं, जलापूर्ति, बंदरगाहों की मरम्मत तथा रखरखाव का काम करना।
नगर का प्रमुख अधिकारी नागरक कहलाता था।चाणक्य ने नगर प्रशासन में कई विभागों का भी उल्लेख किया है जो नगर के कई कार्यकलापों को नियमित करते थे,
जैसे -लेखा विभाग, राजस्व विभाग, खान तथा खनिज विभाग, रथ विभाग, सीमा शुल्क और कर विभाग।इतने बड़े साम्राज्य की स्थापना काएक परिणाम ये हुआ कि पूरे साम्राज्य में आर्थिक एकीकरण हुआ।किसानों को स्थानीय रूप से कोई कर नहीं देना पड़ता था, हँलांकि इसके बदले उन्हें कड़ाई से पर वाजिब मात्रा में करकेन्द्रीय अधिकारियों को देना पड़ता था। उस समय की मुद्रा पण थी।
जैसे -लेखा विभाग, राजस्व विभाग, खान तथा खनिज विभाग, रथ विभाग, सीमा शुल्क और कर विभाग।इतने बड़े साम्राज्य की स्थापना काएक परिणाम ये हुआ कि पूरे साम्राज्य में आर्थिक एकीकरण हुआ।किसानों को स्थानीय रूप से कोई कर नहीं देना पड़ता था, हँलांकि इसके बदले उन्हें कड़ाई से पर वाजिब मात्रा में करकेन्द्रीय अधिकारियों को देना पड़ता था। उस समय की मुद्रा पण थी।
अर्थशास्त्र में इन पणों के वेतनमानों का भी उल्लैख मिलता है।न्यूनतम वेतन ६० पण होता था जबकि अधिकतम वेतन ४८,००० पण था।छठी सदी ईसा पूर्व (मौर्यों के उदय के कोई दो सौ वर्ष पूर्व) तकभारत में धार्मिक सम्प्रदायों का प्रचलन था।
ये सभी धर्म किसी न किसी रूप से वैदिकप्रथा से जुड़े थे| छठी सदी ईसापूर्व में कोई ६२ सम्प्रदायों के अस्तित्व का पताचला है जिसमें बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय का उदय कालान्तर में अन्य की अपेक्षा अधिक हुआ मौर्यों के आते आते बौद्ध तथा जैन सम्प्रदायों का विकास हो चुका था। उधर दक्षिण में शैव तथा वैष्णव सम्प्रदाय भी विकसित हो रहे थे। मौर्य प्राचीन क्षत्रिय कबीले के हिस्से रहे है।ब्राह्मण साहित्य,विशाखदत्त कृत व यूनानी स्रोतों के अनुसार मोर्या क्षत्रिय सुरियावंशी राजवंश है| जब मौर्य साम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म स्वीकार करके सभी प्रजा को समानता और दास प्रथा समाप्त करवाई धर्म के पाखंडवाद की जगह भाईचारे को बढ़ावा दिया और धार्मिक जुलूस आदि काम किये तो ब्रामण सामाज के पेट पर लात पड़ी इसी राजनीतिक द्धेशता के कारण ब्रामाण लेखकों ने मौर्य जाति को शूद्र लिखा । मौर्य के क्षत्रिय होने के प्रमाण सम्राट अशोक के शिलालेख में लिखा है मैं उसी जाति में पैदा हुवा हूं जिसमें स्वंय बुद्ध पैदा हुवे। बुद्ध की जाति की प्रामाणिकता हो चुकी है कि वो क्षत्रिय कुल में पैदा हुवे थे । । और स्वंय चाणक्य कट्टरवादी ब्रामण थे वो कभी भी किसी शुद्र को न अपना शिष्य बनाते और न ही चन्द्रगुप्त को राजा बनने में मदद करते। चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे 'इसी योग्यता को देखते हुए चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया, एवं एक सबल राष्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है।
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