आक्रोश.....?


मन मे आये हुए बौखलाहट के बिचार जब मन मे ही अपना निवास सुनिश्चित कर लें तो समझ जाइये की वो आक्रोश को ही जन्म देंगे।
आक्रोश हमेशा निजी जीवन मे विकाश की राह में बाधा बनने का काम करते है।
क्योंकि हमारे जीवन का आधा समय आक्रोश के बारे में बिचार करने में ही व्यर्थ चला जाता है ।

जरूरी नही की आक्रोश को प्रगट करके हम अपनी मंशा को शिखर तक पहुचा सकते है ।
बिना किसी घातक प्रतिक्रिया के भी हम अपने काम पूरे कर सकते है।
परन्तु आदत अब ये बन चुकी है कि ईंट का जबाब तो हम पत्थर से देंगे पर कभी ये नही सोचा की अगर उसका भी सूत्र यही हुआ तो
तब तो सारी जिंदगी इसी आक्रमण में गुज़र जाएगी।
क्यों हम नही समझते है कि हर समय उपयुक्त नही होता कभी भी समय की भी सुन लेनी चाहिए ।
बिचार को परिवर्तित करके और अपनी मंशा को गुप्त रखकर ईश्वर पर विश्वास करके इंतजार कर लेना ही अपने आक्रोश को पूरा कर लेने के बराबर है ।।
क्योंकि समय की ताकत तलवार की ताकत से कहीं अधिक महत्व रखती है ।।