परिवर्तन.....?

परिवर्तन मन और ह्रदय का होना स्वाभाविक होता है परंतु सवाल तो ये है कि किस हद तक सत्य साबित होता है परिवर्तित का होना।
क्योंकि अत्यंन्त शीघ्रता होती है अन्य को ये एहसास दिलाना की अब तो उसमें परिवर्तन उफान पर है।
खुद का परिवर्तन दृष्ट के निकट होते हुए भी समझ से ओझल होता है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है पर नियम को साक्षी मान कर खुद परिवर्तित हो जाना हर समय उचित नही होता है।

परिवर्तन समझ मे हो तो समझ आता है परंतु परिवर्तन नियत में हो तो समझ से परे है।
खुद का परिवर्तन यदि दर्जा बढ़ा रहा है तो उचित है किंतु वही परिवर्तन यदि किसी का दर्जा घटा रहा हो तो परिवर्तन पाप का कारण भी बन सकता है।
किसी का विस्वास जीतकर फिर उसके लिए बदल जाना या परिवर्तित हो जाना किसी भी हाल में उचित नही होता।
नेता अभिनेता का परिवर्तित होना समझ आता है क्योंकि इन्हें लगाव से ज्यादा धन की चाहत होती है परंतु बेहतर इंसान का परिवर्तित होना अशोभनीय है।
परिवर्तन किसी के दुख का कारण न बने ये जरूर दिमाक में होना चाहिए।।।