सत्ता.....?

बहुत समय पूर्व राजा महाराजा में होड़ हुआ करती थी सत्ता को स्थापित करने की और कई लोग इस सत्ता की लालच में जीवन से हाँथ भी धो बैठते थे।




उस समय राजनीत के मायने अलग थे क्योंकि उस समय शिक्षा का अभाव था।
लोग अंधविस्वास को ज्यादा महत्व देते थे।
पर आज न तो शिक्षा का अभाव है और न ही कोई अंधविस्वास है फिर भी लोग आज सत्ता की आड़ में लुट रहे है।
सत्ताधारी लालच में ऐसे फस गए कि खुद के फायदे के अलावा उन्हें कुछ समझ ही नही आता है।
पर समस्या सत्ताधारी में नही समस्या है तो सिर्फ जनता में जिन्हें अपना नेता चुनने का पूरा अधिकार होता है फिर भी लालच में आकर या दवाव में आकर जनता बिक जाती है फिर अगले दिन से वही रोना शुरू हो जाता है।
पता ही नही चलता कि कब हमने बलात्कारी नेता को अपना लिए उसे सत्ता में बिठा दिए ।


शिक्षित होकर भी हम मूर्खो से भी बद्दतर काम कर जाते है ।
और तो और हम उस सत्ताधारियो को खुला मौका प्रदान करते है अपनी कमजोरियों से अवगत कराते है
क्योंकि हमें आरक्षण चाहिए

हमे जातिवाद खत्म करना है हमे बस जला कर भारत बंद करना है हमे हमारी जाति के नाम पर किसी ने बुलाया तो उसे जेल में बंद करवाना है।
कबतक देश में ये सब रोना चलेगा क्यों हम भारत बंद का आगाज़ जोर शोर से करते है
क्या हमें मालूम नही की भारत बंद होने से हमारे कई बीमार भाई बहनों की आंखे भी हमेशा के लिए बंद हो जाती है। कितने गरीब के घर जल जाते है कितना नुकसान होता है देश का ।
क्या सिर्फ जातिगत समस्या ही भारत की अहम समस्या है किसी का मर जाना किसी का अनाथ हो जाना किसी का बेघर हो जाना कोई मायने नही रखता देश के नागरिकों के लिए या उन नेताओं के लिए जो चिताओ पे भी अपने फायदे की रोटी सेकने के लिए तैयार खड़े रहते है।
कब तक इस उलझन में उलझता रहेगा देश ।
अब भी समझने का मौका शेष है हमे आरक्षण वाला देश नही बल्कि जागरूक वाला हिंदुस्तान चाहिए जिसमें हर कोई अपने ज्ञान से रोशनी फैलाता रहे।
सबके साथ सबका विकाश हो ।
तभी अखंड भारत का निर्माण होगा जिसकी जरूरत हर एक हिंदुस्तानी को है।