आकर्षण.....?

आकर्षण होना स्वाभाविक है परंतु आकर्षण में लीन हो जाना गलत है ।
क्योंकि हर परिस्थिति में आकर्षण का सत्य होना आवश्यक नहीं है।
सत्य को परखने के बाद आकर्षण को अपनाने और उस आकर्षण में सक्रियता दिखाना उपयोगी हो सकता है परंतु बिना तह तक गए आकर्षण को ही सत्य समझ लेना उचित नही होता।

क्योंकि वास्तव में आकर्षण कारण से परे होता है और सम्भवतः सत्य और असत्य को पहचानने की बुद्धि को भी क्षीण कर देता है ।
इस लिए आकर्षण को ही आत्मा की आवाज़ समझना भूल भी हो सकती है।
हर बार परिस्थितियो से बिफल होकर कुछ भी सीखना स्वभाव में शामिल नही करना चाहिए।
इस लिए सत्य को पहचानिए आकर्षण तो होता ही रहेगा।।।