सम्मान.....?


सम्मान की सूक्ष्मता इंसान की पारदर्शिता पर निर्भर करती है ।
कभी भी अपने सम्मान को किसी की विवशता कदापि नही बनाना चाहिए
क्योंकि सम्मान हमेशा ह्रदय से निकलता है और विवश हो कर सम्मान करना सम्मान नही कहलाता ।

आयु की सीमा के निरंतर बृद्धि के साथ साथ सम्मान को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाना मानव धर्म का इकलौता लक्ष्य होता है।
और जीवन मे जिसने सम्मान नही अर्जित कर पाया उसका जीवन सार्थक न होने के बराबर है।
धन कमाना यदि आसान नही तो मुश्किल भी नही है परंतु सम्मान अर्जित करना अत्यंत कठिन होता है ।
क्योंकि धन की लालसा सदैव सम्मान को नुकसान पहुचाती है। और जो व्यक्ति धन और सम्मान की सूक्ष्मता को समय रहते पहचान लेता है वह सदैव सम्मान का पात्र बनता है।
उदाहरण हमेसा स्वयं का हो तो सीख भी अच्छी मिलती है पर जीवन की गलतियों पर पर्दा डालना मानव समाज की महत्वपूर्ण इकाई है फिर कैसे उदाहरण लेकर सीख पाएंगे
मतलब पहले अपनी गलतियों को मानना सीखना होगा उन्हें स्वीकार करना होगा तभी अच्छा उदाहरण मिल पायेगा ।
फिर तो सम्मान प्राप्त करना उतना भी कठिन नही होगा जितना दिमाक में घर कर के बैठा है।
परन्तु सम्मान और धन कब तक आपके समीप रहेंगे इसका आकलन कर पाना अत्यंत कठिन है ।
उम्मीद करिये आपके जीते जी आपसे अलग न होने पाएसम्मान औरधन