समाज.....?


समाज समाज समाज
दुख मक्कारी कष्ट समस्या खुशियां आक्रोश रोक लगाव दुश्मनी मिला कर एक अच्छी खासी पोटली तैयार हो जाती है जिसे हम प्यार से समाज का नाम दे देते है।।।।
एक तरफ समाज आपको संस्कार सिखाता है और एक तरफ यही समाज आपको आपके मन का भी नही करने देता ।

कभी तो सिर खुजाने पे मजबूर कर देता है ये समाज और कभी तो सीने की चैड़ाई को आपकी उम्मीद से भी ज्यादा चौड़ा कर देता है।
आज तक समझ नही आया कि समाज चाहता क्या है हमारी खुशिया या फिर अपने मनमुताबिक ढाली गयी मूर्ति ।।
पर समाज की उत्पत्ति हुई कहा से ये समाज  प्रगट हुआ कि इसकी खोज की गई है ये भगवान के द्वारा अवतरित किया गया या फिर इंसानो द्वारा बनाया एक खतरनाक समुदाय है ।
सोचने पर मजबूर कर देता है ये समाज ।।।।
पर क्या कभी सोचा गया किसी के द्वारा की समाज मे अधिकतम सक्रिय रहने वाले लोग अपने जीवन मे कुछ 
विशेष कर नही पाए और जिन्होंने अपने जीवन मे कुछ खास किया उनके पास समाज को देने के लिए समय नही है क्योंकि समाज की सारी बेड़ियोँ को तोड़कर ही वो कुछ कर पाए है।
तो अब बताइये जिन्होंने कुछ जीवन मे किया नही वो आपको सफल कैसे होने देना चाहेंगे ।
अब बात करे कि हम समाज मे जुड़े रहे और उनकी बात सुन या न सुने ।
अब ये बात भी हम पे ही है कि हम संगीत सुनना पसंद करेंगे या फिर कोलाहल
बड़ी विचित्र बात है कि समाज आपको डरपोक ज्यादा बनाता है।।
अब इस विचित्र समय मे हम करे क्या इसके लिए आवश्यक है कि हम समाज को नही खुद को देख के चलेंगे ।
क्योंकि समय के साथ हमेशा समाज की सोच बदली है ।
अच्छा किया फिर भी दोष निकलना समाज के प्रमुख कार्यो में एक है।
 समाज ने तो आज तक किसी को खाना तक नही खिलाया और न ही कोई सहयोग किया है फिर हम समाज के लिए अपना जीवन क्यों बर्बाद करें।
हो सकता है कि हमारी सोच से कई लोग सहमत न हो पर उम्मीद करता हु की ये लोग समाज के सक्रिय लोगो मे स्व न हो क्योंकि सक्रिय लोग अपने जीवन मे कुछ विशेष....................। समाज के साथ चलना उस हद तक उचित है कब तक समाज हमारी खुशियो के आड़े नही आता और जिस दिन आया तो बस समाज हमसे बना है हम समाज से नही।।।।।।।।।।।