आस्था.....?

आस्था शब्द में वास्तव में अदृश्य ताकतों का भंडार है।
आस्था ईश्वर से हो या इंसान से दोनों ही एक नई ऊंचाइयों को संभावित करती है।
आस्था का जीता जागता उदाहरण आशाराम और डेरा प्रमुख जी है।

जिनकी चर्चा विकसित और पिछड़े ग्रामीण इलाकों तक चुनावी हलचलों से भी ज्यादा पहुची है ।
समाचार चैनल वालो ने तो इनकी सारी पोल पट्टियों से ऐसा पर्दा उठाया जैसे कोई जातीय दुश्मनी कई पुस्तों से फैसले का इंतज़ार कर रही हो और अचानक से मौका मिल गया हो।।
पर सवाल ये नही की आशाराम को उनके समर्धक बापू के नाम से बुलाते थे और डेरा प्रमुख के समर्थक उन्हें भगवान से ऊंचा दर्ज़ा देते थे ।
सवाल तो ये है कि इंसानी आस्था इतनी कमज़ोर कैसे हो सकती है ।
क्या भगवान के नाम पे हमे कोई भी लूट सकता है
या किसी भी दकियानूसी अंधविस्वास में हमे झोंक सकता है।
वास्तव में भविष्य को लेकर और अपने परिवार को लेकर औरतें ज्यादा चिंतित रहती है इसे प्रेम कहे या फिर मूर्खता ये समाज की सबसे बड़ी समस्या का विषय है।
सारे भले कामो का ठेका हमारे समाज की महिलाओं ने लिया है वही सारे सत्संगों में ऐसे उपस्थित होती है जैसे  सत्संगों में गये बिना नर्क का दरवाजा उनके घर के आंगन से ही जुड़ जाएगा।।
किसी भी ढोगी बाबा की इतनी हिम्मत कैसे हो सकती है कि वो किसी भी औरत की इज्जत के साथ खिलवाड़ करे ।।
पर हिम्मत भी तो हमने ही बढ़ाई है और हमारे समाज की पढ़ी लिखी औरतो ने।
पर औरतो को समझ पाना बहुत ही कठिन कार्य है।
भगवान में आस्था रखना उचित है पर ऐसी भी आस्था किस काम की जो अन्धविस्वास में परिवर्तित हो जाये।
क्या हम ईश्वर की प्रार्थना अपने परिवार के साथ घर मे बैठ कर नही कर सकते।
या फिर झुंड में ही हमे आराधना करना उचित लगता है ।
हमारी आस्था तो अब हमारे हाँथ में बची ही नही है क्योंकि हमारी आस्था के असली मालिक तो बाबा जी लोग है जिनके राज़ पर्दो में प्रसारित होने लगे है।\
जरा विचार करिये की हमारे आस्था के पात्र वो व्यक्ति कैसे हो सकते है जो सारि सुख सुविधायों से लिप्त रहते है जो धन का संयोजन व्यापारियों से भी ज्यादा करते है और तो और जो औरतो को अकेले में बुला कर उन्हें क्षमा प्रदान करते है एवं प्रचार प्रसार के लिए सारे प्रसाधनों का इस्तेमाल करते है।
ईश्वर तो अब गलती के बाद याद आते है पहले तो ईश्वर भी कुछ होता है ये मनना अंधविस्वास से लगने लगा है अब तो जो भी है सब बाबा या बापू है ।
धन्य है वो औरते जिन्होंने परिवार से ज्यादा पाखंडियो को समय सौंपा है पर ये बात भी नही झुठलाई जा सकती कि ये औरते वही है जो पति या उसके परिवार से सीधे मुह बात नही करती और बाबाओ के चरणों मे ऐसे समर्पित रहती है जैसे बाबा जी लोग इन्हें बिना मृत्यु के ही स्वर्ग का सीधा भ्रमण कर देंगे।
पर भला हो उन साहसी पतियो का जिन्होंने डेरा प्रमुख या अन्य महान पाखण्डी बाबाओ के द्वारा गलती की माफी के बाद भी घर मे पनाह दिए हुए है।।
पर अब भी औरते या समाज के अन्य महान लोग समझ जाएं तो कोई विशेष देर नही हुई है।।।।।
हम ईश्वर को आत्मा से मानेंगे किसी के माध्यम से नही।