चुनावी माहौल.....?

जेब मे देशी कट्टा रखने वाले साथ में हथियार बन्द आदमी रखने वाले चुनावी दौर में ऐसे हाँथ जोड़ते है जैसे भगवान मिल गया हो उन्हें ।
साथ मे क्या जमीन में भी बैठ जाना इनके लिए कोई बड़ी बात नही क्योंकि जमीर तो इनका जमीन के भी नीचे गड़ गया है।
इन्हें देख के बस यही आभाष होता है कि
आ गए सफेद पॉश में मन के काले लोग।
क्योंकि ये वही है जो चुनाव जीतने के बाद ऐसे गधे की सींग की तरह गायब होते है की खुद मिलने जाने पर भी ये नही मिलते।
इनके आस्तीन के सांप साफ मना कर देते है कि नेता जी का शेड्यूल बहुत बिजी है।
वो तो अभी मीटिंग में है
जबकि नेता जी अंदर एसी के ठंडक में नौकरानी को घूरते हुए पेट पूजा कर रहे होते है।
कुछ तो बलात्कार भी कर रहे होते है जिनका पर्दा बाद में फास होता है।
इनके पर्चे में इनके नाम के आगे इतनी पदवी होती है कि खुद भगवान के भी नाम के आगे भी इतने शब्द नही लगे होंगे।
साहसी और निडर तो गाढ़े अक्षरों में लिखा होता है क्योंकि इनमें तो साहस ऐसे भरा होता है कि ये तो बलात्कार भी गर्व से करते है और डर तो इन्हें भगवान का भी नही होता।
अच्छा इनके कपड़े भी चुने हुए होते है ।
बचपन मे सोचता था नेता सफेद कपड़े क्यों पहनते है जबकि रंग बिरंगे कपड़े तो ज्यादा जंचते है
आज समझ आया कि इनके मन का काला पन कही दिख न जाये इसी लिए सफेद कपड़े ज्यादा पहनते है।
इनका भाषण इनके वादे सब के सब झूठे होते है।
पर इनका झूठ इनकी बेईमानी हमारी मूर्खता हमारी आंखों से ओझल कर देती है।
समझ नही आता कि चुनाव में हम इनके झांसे में आ कैसे जाते है।
आज मोमबत्ती जलाने का फैशन सर में है किसी ने ये नही सोचा की उसको ही हटा दिया जाए जिसके बजह से मोमबत्तिया जलानी पड़ रही है।
                                          
नेताओ के दिखावे में नही उनके असलियत को जानिये
फिर देखिए वो कैसे जनता के नौकर बन के रहते है।