हिंदुस्तानी हस्पताल.....?

दिनभर खेतों में हल चलाना और पूरी रात इस सोच में गुज़ार देना की क्या ईश्वर मेहरवान होगा या इस बार भी फसल फासलों में रह जायेगी।

ऐसे किसान या फिर अन्नदाता जब किसी बीमारी का शिकार होते है तब असलियत पता होती है हिंदुस्तानी हस्पताल की।
एक बार एक किसान जो कि नाम से किसान था न उसके पास पर्याप्त जमीन थी और न शरीर मे पर्याप्त ताकत परन्तु शहर के छोटे से गाँव में उसका जन्म हुआ था इसलिए उसे किसान शब्द से ही पहचाना जाता था।
उसकी तबीयत उसकी उम्मीद से ज्यादा खराब होने लगी कई बंगाली डॉक्टर और सरकारी हस्पतालों में दिखाने के बाद भी उसके मर्ज का न पता लग पाया और न ही उसका इलाज पूर्ण हो पाया ।
कई गांव के लोगो ने उसको फ्री में सलाह दिया कि आप शहर में जाकर अपना इलाज करवाओ तभी कुछ दिन जीवन शेष बचेगा।
किसान चल पड़ा शहर की ओर और पहुचा वो एक निजी हस्पताल में जिसमे आदमी की कीमत से ज्यादा का इलाज आसानी से हो जाता था।
अंदर घुसते ही चारो तरफ की लाइट को देख कर उसे स्वर्ग की अनुभूति होने लगी और एसी चलने के कारण अच्छी धूप में जाड़े का आभाष सा हो रहा था।
चकाचोंध से जब उसका दिमाक टूटा वो चारो तरफ देख रहा था वो कुछ तलाश रहा हो जैसे
बहुत मुश्किल से एक काउंटर पर बैठी लड़की जो कि शकल से तो हिंदुस्तानी लग रही थी परन्तु चेहरा में इतना मेकअप और पाउडर लगाई थी कि सफेद कलर भी उसके सामने फीका लगे और वो किसी अंग्रेज़ से कम नही लग रही थी।
किसान ने उससे बात करने का मन बनाया ।
काफी साहस के बाद जब किसान उस लड़की से अपनी बीमारी का ज़िक्र करने लगा पर ये क्या वो लड़की मानो किसी दूसरे ग्रह से आई हो अंग्रेजी तो इतनी तेजी से बोल रही थी की अंग्रेज़ भी शायद ही बोल पाएं।
किसान ने काफी मशक्कत की पर उस लड़की ने हिंदी के एक भी शब्द का उपयोग नही किया और किसान काफी कुछ समझना चाहा परन्तु लड़की ने उससे बात करने से इनकार कर दिया।
अब समझ नही आ रहा था एक हिंदुस्तानी लड़की जिसके दादा परदादा अंग्रेजी का एक शब्द भी न जानते रहे हो वो आज हिंदी बोलने में अपनी बेज्जती महसूस कर रही थी।
शायद किसान को ये पता नही था कि वो इंडिया में है वो जमाना गया जब आदिकाल में विवेक विनम्रता और सहयोग से लैस हिंदुस्तान हुआ करता था आज आपका व्यक्तित्व अंग्रेजी से बात करने में ही दिखेगा।
आपके गवार या पिछड़ा होने का अंदाज़ा लोग आपके हिंदी बोलने से ही लगा लेंगे।
खैर काफी मशक्कत के बाद एक सज्जन डॉक्टर से उस किसान की मुलाकात हुई और फिर किसान को भर्ती किया गया 6 दिन तक किसान के शरीर मे इतने छेद किये गए जितने किसान की गिनती से बाहर थे हर आधे घण्टे में डॉक्टरों का समूह ये देखने जरूर आता था कि मरीज की हालत कैसी है
उसकी इतनी जांचे होती थी मानो सारे मर्ज इस किसान को आगोश में लिये हो।
ध्यान रहे अकेले मरीज़ का आना और फिर मर जाना हस्पताल को होने वाले फायदे में घाटा है जोकि हस्पताल वाले ऐसा कभी नही होने देना चाहते जब तक की उनका पैसा बसूल न हो जाये।
इसके बाद मरीज भले ही घर जा कर मर जाये परन्तु पैसा देकर मरे
किसी तरह अस्पताल से किसान की छुट्टी की गई जैसे ही अस्पताल के पैसों वाले काउंटर के पास किसान ने जाकर अपने बिल की मांग की तभी उसके सामने एक अंग्रेजी में लिखा हुआ रंग विरंगा पर्चा थमाया गया ।
किसान तो इतना पढ़ा लिखा था नही की अंग्रेज़ी को पढ़ पाता किसी तरह उसे उसकी बीमारी में लगे खर्च का पता चला ।
अब किसान खड़ा भी नही रह पा रहा था उसका बिल उसके जीवन से ज्यादा था यदि वह अपनी सारी जमीन भी बेच देता फिर भी हस्पताल का कर्ज नही अदा कर पाता वो नीचे बैठ कर आवक सा हो कर रो रहा था और मौत की भीख मांग रहा था ।
पर हस्पताल में पदस्थ कर्मचारी उसे बार बार पैसे के लिए बोल रहे थे ।
और किसान को इस तरह घूर रहे थे जैसे भूखे शेर शिकार को घूर रहे हो
पर किसान को पहली बार भगवान का सहारा मिला और कर्ज में डूबे किसान ने वही पर अपनी अंतिम सांस ली।
मुझे किसान के मरने या हस्पतालों के महंगे होने का कोई भी दुख नही है मुझे तो भारत सरकार और राजनीति में बैठे दलालों से समस्या है ।
अरबो रुपये खर्च कर सारी सुख सुविधा का ध्यान रखेंगे परन्तु एक गरीब किसान बीमारी से कम और कर्ज से ज्यादा मरता है उसका इनके पास कोई इलाज नही।
सरकारी अस्पताल का बजट इतना होता है जैसे स्वर्ग को धरती में ला रहे हो परन्तु अंदर की सच्चाई देख कर रूह कांप जाती है।
सरकारी हस्पताल के अंदर हर सुबिधा के बाद भी मरीज़ों को बाहर निजी हस्पताल का सहारा लेना पड़ता है।
और डॉक्टर हस्पताल से ज्यादा अपनी निजी क्लीनिक में पैसा कमाते है और वही समय देते है।
हिंदुस्तान का दुर्भाग्य है कि आज इतनी तरक्की के बाद भी किसान जो कि अन्नदाता है वो कर्ज़ से लदे है उनपर सिर्फ राजनीति होती है पर उनकी समस्या का समाधान कभी नही होता।


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