पिता एक छाँव.....?

कई कवितायें और कहानियां माता और पिता पर लिखी जा चुकी है।
जिसमे माँ और पिता को ईश्वर से भी बढ़कर बताया गया है लेकिन सवाल सिर्फ कहानियों को पढ़ने का नहीं है
बल्कि उन कहानियों से हमने सीखा क्या और अपने जीवन में उस बात को उतारे कितना मायने तो ये रखता है|

आज समय और सभ्यता विकास के पथ पर ऐसी सरपट चाल से चल रही है कि उस भेड़ चाल में हमसे क्या छूट रहा है या हम क्या छोड़ रहे है इस बात को जानना या समझना शायद हमें जरूरी ही नहीं लगता।
पता नही ऐसी अमीरी लेकर हम क्या हासिल कर लेंगे जब अपने साथ ही न हो उस अमीरी में।
पहले घर भले ही छोटे हो पर रहते सब इकठ्ठे थे आज घर काफी बड़ा है पर रहना अकेले है ।
बात करने के लिए पहले चौपाल लगती थी घरों के पास  सारे लोग इकट्ठे होते थे और आज लोगो के मरने पर भी उनके परचित या सम्बन्धी व्हाट्सअप या फेसबुक पर शोक व्यक्त करते है।
बदलाव उचित है परन्तु आदमी का बदलना वो भी अपनो के प्रति अनुचित है।
हम आज सोशल मीडिया पर इस कदर सक्रिय है जैसे कि हमारे न रहने से सोशल मीडिया या तो बन्द हो जाएगी या हम विशेष ज्ञान से बंचित रह जाएंगे।
हमे फिक्र ही नही है हमारे परिवार या फिर परिचितो की हम तो सिर्फ वीगो वाली का ध्यान रखते है कि दिन में उसने चौदह बार खाना खाया या नही ।
पर सच तो ये है कि हमारी कामयाबी और तरक्की में जरा सा भी योगदान उन मित्रो का नही होता जिनके लाइक और कमेंट को देखने के लिए हम अपनी आंखों को फोड़ रहे है।
एक पिता अपने जीवन मे सब कुछ हार जाता है बेटे को जिताने के लिए और वही बेटा अंत मे ज्ञान देता है पिता को की आप दुनिया के हिसाब से अपडेट नही है आज मॉर्डन युग है और आप आज भी दकियानूसी ज्ञान लेकर बैठे है।
अब उन ज्ञानी बेटो को कौन समझाए की तुम्हे मॉर्डन बनाने के चक्कर मे वो पिता पिछड़ा ही रह गया तुम्हारी नज़र में ।
एक पिता का दर्द और अनुभव वाकई पिता बनने के बाद ही महसूस होता है ।
कभी भी इतना ज्ञान और बुद्धि इंसान के अंदर नही आनी चाहिए कि उसे ये लगने लगे जाए कि वो अपने पिता से ज्यादा बुद्धिमान या ज्ञानी है।
समय के साथ विकास भी होता है और तकनीकी साधन भी उपलब्ध होते है और जिस समय जिसका विकाश होता है उस समय युवाओं को उस तकनीकी को सीखना काफी सरल होता है इसका अर्थ यह नही होता कि यदि पहले के लोग उस तकनीकी का उपयोग नही कर पा रहे है तो वो काफी पिछड़े है या दकियानूसी ख़यालो में जी रहे है।
बल्कि इसका साफ मतलब है कि नींव उन्होंने डाला और घर अपने बनाया।
और ये बात तो हर व्यक्ति समझता है कि नींव जितनी मजबूत होगी घर उतना ही सुंदर और ऊंचा होगा।
पिता का सम्मान करिये और उन्हें ये जरूर एहसास दिलाइये की उनकी बराबरी नही करनी है बल्कि उनके जैसा बनना है।