राज्य+नीति.....?

हर जगह बात बात पर राजनीतिक बाते इस तर्ज़ पर तजुर्बा दिखाती हैं कि प्रतीत होता है कि हम सब से बड़ा राजनीतिज्ञ शायद ही कोई हो।

हम निर्णय भी लेते है और परिणाम भी घोषित करते है और यहाँ तक कि जो वास्तविक राज्यनीतिज्ञ है वो भी हमसे कम सोचते है क्योंकि हमारे पास अत्यधिक फुर्सत है राज़नीतिक मुद्दों पर बात करने की।
लोग तो इस कदर सत्ता धारियों पर शंका करने लगे है कि हर सत्ताधारी उन्हें देश को गर्त में ले जाने वाला लगता है ।
अब क्या करे किसे चुने और क्यों चुने क्या गारंटी है कि जिसे हम चुनेंगे वो देश को चांद पे ले जाएगा।
और अहम बात तो ये है कि हमने इस देश के विकाश में क्या योगदान दिया क्या कुर्सी पर बैठा राजनेता ही देश के विकाश की डोर को सम्भालेगा या फिर हम भी कुछ करेंगे देश के लिए।
कई मुद्दे है जिन पर लोगों की चौपाल दिन में हर घण्टे बर्तालाप के लिए  तैयार रहती है।
क्योंकि उनके पास समय की कोई कमी नही है हा अगर कोई देश के प्रति काम हुआ तो फिर उनका प्रोटोकाल देश के राष्ट्रपति के जैसा है 1 महीने पहले से हर घण्टे का व्यस्त शेड्यूल होता है ।
पर वास्तव में नेता को दोषी ठहराना देश के प्रति खरी ईमानदारी नही होती क्योंकि अकेला नेता देश को ऊंचाइयों पर नही ले जा सकता उसके लिए नेता को प्रजा का सहयोग चाहिए होता है
परन्तु प्रजा तो बुराइयों में मशगूल है उसे तो घंटो पेट्रोल के बढ़ते दामो पर डिबेट करना है और साबित करना है कि देश को चलाना नेताओ के वश की बात नही है।
वैसे एक बात तो है जो देश को बखूबी चलाने की कसमें खाते है वो खुद अपना घर अच्छे से नही चला पाते।
देश के प्रति अपनी ईमानदारी को बाहर आने दीजिये खुद के फायदे से ऊपर उठ कर कुछ देश के लिए समर्पित भी कीजिये न गलत करिये न आसपास गलत होने दीजिए फिर डॉलर भी रुपया के बराबर हो जाएगा और गरीबी भी हट जाएगी।
कोसने से यदि सब सही हो जाता तो वास्तव में हम सब शायद चाँद में पैदा होते क्योंकि हमारे पूर्वजों ने भी सिर्फ कोसा ही है देश के नेताओ को ।
अब भी कुछ विशेष बिगड़ा नही है बस मन में ठानने की देर है।
कुछ तो देश के प्रति ऐसा करे जिससे मन को शांति मिले और सर भी गर्व से उठा रहे।