शिक्षक का शिष्य


शिक्षक का सम्मान व्हाट्सअप में हाय भेजने से ही सम्पूर्ण रूप से हो जाता है।
क्योंकि समय किसी के पास है नही गुरु का ज्ञान लेने के लिए अब तो सबसे बड़े गुरु आर्थात महागुरु गूगल चच्चा ही है जो बिना किसी दंड के ज्ञान को बार बार सिखा देते है
अब देखिए वो अलग बात है कि किस उम्र में क्या सिखाना है इसकी समझ गूगल को भी नही है।

दुनिया विकाश के रास्ते मे सरपट दौड़ रही है  गुरु शिष्य का रिश्ता धीरे धीरे अखंड मित्रता में परिवर्तित होता जा रहा है क्योंकि अब गुरू और शिष्य में शिष्टता की रेखा मिटती जा रही है।
देश का दुर्भाग्य कहे या फिर भारतीय व्यवस्था की रणनीति की आज हमारे देश मे गुरु ज्ञान के लिए नही बल्कि अपने निजी संस्थानों को धन के लिए शिष्यों से बसूले जाने वाले मोटे रकमों के लिए जाने जाते है।
आज तो निजी शिक्षण संस्थानों में घुसते ही स्वर्ग सा अनुभव होने लगता है।
चारो तरफ एयर कंडीशन और अंग्रेज़ी प्रणाली से लैश कमरे होते है।
समझ नही आता कि बच्चा पढ़ने गया है या फिर 5 स्टार होटल में सैर करने।
इससे अच्छी प्रणाली तो देश के विकसित न होने में ही थी भले ही कुर्सियों की जगह जमीन में बैठना पड़ता था और अच्छे कमरो की जगह खुले आसमान के नीचे पढ़ना पड़ता था परंतु तब गुरु और शिष्य का रिश्ता समझ आता था। एक डर और सम्मान आँखों से छलकता था।
आज तो शिक्षक के डांटने पर बच्चे तो बच्चे उनके मातापिता तक जेल भिजवाने का जुगाड़ कर लेते है।
क्यों न हम सब प्रण लें कि हमे छोटी से छोटी अच्छी बातों को सिखाने वाला भी हमारा गुरु ही है और हम पूरी ज़िंदगी उस व्यक्ति का सम्मान करेंगे।
और शिक्षक बच्चों को उतना ही प्यार और छूट दे जिससे उनके जीवन मे उस छूट का दुष्परिणाम देखने को न मिले ।
आज कम उम्र के बच्चे नशे में लिप्त है
जितना दोष बच्चों के मातापिता का है उतना दोष बच्चों के शिक्षकों का भी है।
दंड आवश्यक है क्योंकि कुछ सीख दण्ड से ही प्राप्त होती है ।