कोरोना का कहर .....?





lockdawn में लोग गाँव की तरफ इस कदर भाग रहे है जैसे गाँव गाँव हुआ lockdawn की दवा हो गया हो और मजा इस बात से बात से आता है की सबसे पहले गाँव में सरेंडर भी वही हुए है जिनको गाँव में रहना या फिर गाँव के लोगो से बात करना देहातीपन या ग्रामीण स्वाभाव लगता था | कोरोना है तो बड़ी गज़ब की चीज़ साहब बड़े से बड़े लोगो को भी गाँव की याद दिला दिया
अब बस गाँव वाले लौट के आये परदेसियो को सहरी जाहिल जैसे शब्दों से सम्भोधित करने लग जाएहलाकि ये राय नही है मेरी बाकि समझ तो गाँव वालो में भी होती है | हर जगह चर्चा में बस यही है की वो इतने किलोमीटर से आया वो इतने किलोमीटर से आया कोई इंदौर से आया कोई मुम्बई भोपाल से आया और यहाँ तक की वो भी आया जो कब से नही आया था एक बात नही समझ आई साहब की जो लोग गाँव से शहर ये कह के जाते थे की भैइया गाँव में स्वास्थ समबंधित समस्याओं का कोई उपचार नही है या फिर बेहतर चिकित्सा सुविधा नही है उन्हें आज गाँव में इतनी शुरक्षा कैसे महसूस हो रही है | मुझे तो लगता है कोरोना ने सबको अब गाँव भेजने का निर्णय कर ही लिया है  मेरे भी कुछ जान पहचान वाले घर लौट के आये है  जब मैंने उनसे पूंछा की वहाँ कोरोना ज्यादा था या फिर कोई निजी समस्या फिर क्या सामने वाले ने भी सवाल के बदले सवाल दाग दिए | वैसे आप माने या माने क्युकी ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है पर जो गाँव लौट के आये है उनका मुह देख के मजा बहुत आती है आप भी कोशिस करियेगा पर हा शोशल डिस्टेंस में , कोरोना की बजह से नही कही ऐसा हो की आपकी हंसी निकल आये और बात विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाये और हा अगर ऐसा होता है तो इस बात की जिम्मेदारी मेरी नहीं है | ये बड़ी बात है की लोग आज ट्रक एम्बुलेंस और निजी बाहनो के सहारे तक गाँव वापिस रहे है | गाँव में तो इस समय इस कदर खुशिया है की कम से कम भूले बिसरे लोग घर तो आये, मुझे तो लगता है इसी बात को मद्देनज़र रखते हुए मोदी जी ने दिए जलवा दिए थे क्युकी क्या भरोषा दिवाली के टाइम कोरोना आएगा या नही | इसलिए आज तो सब अपने गाँव घर में है तो कम से कम वर्षो बाद दिवाली तो गाँव की मना ही ले कुछ भी कहो अपने मोदी जी है तो जमीन से जुड़े आदमी | अब आते है घर में रहने वालो की दिनचर्या में हलाकि इस समय कोई विशेष दिनचर्या रह नही गयी है पर फिर भी हम जैसे कर्मचारियों को घर बैठे काम करने की सुबिधा भी कम्पनी वालो ने उपलब्ध कराये है जिससे हम ग्रीन जोन जैसे महसूस कर ही सकते है  हलाकि हम जैसे मजदूरों को घर वाले भी अब समझ गये है की ऑफिस में लड़का काम तो करता ही है क्युकी जब घर में इतना करना पड रहा है तो वहाँ तो और ज्यादा काम होता होगा | ये बताने में विशेष ख़ुशी तो नही हो रही है पर क्या करे बताना भी जरूरी है क्युकी हम जैसे मजदूर लूडो या पबजी भी मन लगा के नही खेल पा रहे है क्युकी बीच में फोन जाये तो हार भी पक्की और फोन करने वाले अधिकारी की गाली भी पक्की | पर फिर भी ये मौका अच्छा है उन लोगो के लिए जो हमेशा बोलते थे की मै बस खाना नही बना पाता या फिर रोटी गोल नही बना पाता क्युकी इस समय सिखाया भी जायेगा घर में और आपको सीखने का समय भी उपलब्ध है बस एक बात का ख़ास ख्याल रखना होगा की घर वालो की नज़र में परफेक्ट होने की जरूरत नही है, नही तो फिर ये lock-dawn के बाद भी असर में रह सकता है और मना करने का तो सवाल ही नही उठता है | इस लिए मेरी तो राय यही है की घर का उतना ही काम करना उचित है जितने मे आप घर में रह सके ज्यादा नेता बनने की तो इस समय जरूरत ही नही है | क्युकी घर में रह कर और इस समय की गर्मी को देख कर कूलर का पानी और फ्रिज का बाटल तो आपके ही हवाले होगा | मन में तो पति पत्नी के नोकझोक को भी लिखने की हार्दिक ईच्छा थी परन्तु मेरी शादी हो जाने की बजह से इस विषय में चर्चा समस्या का विषय हो सकता है इसलिए आप चाहे तो बिना कहे अनुमान लगा सकते है | हलाकि नेताओ के बारे में मेरी राय कभी अच्छी नही रही है पर फिर भी ये मौका उनके लिए भी किसी बरदान से कम नही है वो चाहे तो गरीबो को खाना खिला कर अपनी फोटो फेसबुक या फिर whats-app में डाल सकते है पर ध्यान रहे खाना खिला कर ही फोटो खीचना और डालना है क्युकी वैसे तो एक सेव के साथ दस लोगो की फोटो तो कबसे चलन में है | गाँव लौट के आये सभी लोगो को उनके इस सराहनीय कार्य के लिए बहुत बहुत धन्यबाद बस बिना टेस्ट के घर मत जाइये क्युकी पकडे जाने पर डोक्टर नही पुलिश इलाज़ करती है और आप सब तो शहर से वापस आये हो तो अच्छे से जानते ही होगे की पुलिश का इलाज़ किस तरह होता है मेरी इस बात से इंदौर की घटना का दूर दूर तक कोई वास्ता नही है | वैसे इंदौर की इस घटना से एक बात याद आई की कुछ विशेष धर्म के विशेष लोग आज भी इसे मोदी जी की चाल ही बता रहा है और कोरोना को मानने से इनकार कर रहे है उनका कहना है की हमे कोरोना कोरोना कह के डराया जा रहा है ऐसा कुछ नही है और इसी विशेष धर्म के कुछ विशेष लोग तो फल सब्जियों में थूक तक दे रहे है समझ नही रहा हो क्या रहा है ये इनकी निजी सोच हो सकती है | हलाकि ये सब निंदनीय है पर निंदा भी सबके समझ में आये मुश्किल है |इस समय तो बचना ही सब से बड़ी समझदारी है | मेरे हिसाब से सरकार के आदेशो का पालन ही हमारे बचाव का एक मात्र तरीका है क्युकी अगर जिंदगी रही तो हम पूरी कोशिश करेंगे की अगली बार प्रधानमंत्री राहुल गाँधी जी ही बने क्युकी कोरोना को सीरियसली सबसे पहले उन्होंने ही लिया था |





                                                                          कमलनयन मिश्रा  
                                                

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