।। पहली होली ससुरार की ।।



खेलय फगुआ फागुन माही हमहू उठि ससुरार गयेन, 
सोटय खातिर जलवा आपन हितुआ का लै साथ गयेन। 
चमकत निकहा शर्ट पहिन के लै के मोटर कार गयेन, 
दाढ़िउ मेंछउ सब मुंडवाएन लै के रंग अबीर गयेन।। 

हितुआ के मुह ज्यादा चमकै हम सामर अस बने रहेन, 
रहत विचारत अपने मन मा सोटत गाड़ी चले रहेन। 
पहिल दफा के सुख का सोचत रोड गांव के जात रहेन, 
हरदी लगे के सलगे सुख का सोच सोच मुसकात रहेन।। 

पहुचेंन जईसै दुअरा माही हार्न के ऊपर चढ़े रहेन, 
जलवा गासै खातिर हमहुँ गाड़िन ऊपर टगें रहेन। 
शार का दौड़त आवत देख के अपने मन मुस्कात रहेन, 
काजे के या सुख का पाबै खातिर हम ललचान रहेन।। 

किरिच बनावत नीचे उतरेन हाँथ बाल म फेरि लिहेन, 
कइ हितुआ का पीछे हम त आगे कइ सौहाइ लिहेन। 
आगे केर ओसरिया माही कुरसी दुई धरवाय लिहेन, 
हितुआ के संग बैठ के हमहुँ सबका देखि मुस्काय लिहेन।। 

आवै लागें गोड़ लै परै त आँखिन से समझाय दिहेन, 
हितुआ आही बाम्हन दूसर बातय बात बताय दिहेन। 
सलगे सार से हितुआ केरे परिचय पूर कराय दिहेन, 
सलगे जन के नंबर तक हम तुरतै सेव कराय दिहेन।। 

अब आँखी झाँकय सारिन कांही धीरे से बोलवाय लिहेन, 
आउतै कीनिन्ह खूब नमस्ते हमहुँ सटि बैठाय लिहेन। 
मौका देखि के हमहूँ सबसे थोड़ बहुत बोलियाय लिहेन, 
चाय नास्ता जिउ भर आवा साउहेंन सब धरवाय लिहेन।। 

हम गुझिया और सलोनी माही हितुआ का अटकाय दिहेन, 
घटै कमै न ओखा एकव दूसरौ बे डरवाय दिहेन। 
रीति के पानी पिंगल से हम जाय के अर्ज़ी डाल दिहेन, 
हम रंग अबीर से दूर रहिथे आपन बात बातय दिहेन।। 

बाहर लगिगै कुर्शी दुइठे हम हितुआ संग त बईठ गयेन, 
रंग न लागी ऊपर एकव या बहकावा म आय गयेन। 
सुरुआत अबीर से किहिन सबै जन देखी के हम हर्षाय गयेन, 
कुछै देर में रंग सफेदा गोबर से लेपियाय गयेन।। 

कुछु न छोड़िन सारी सलगी रंगन से नहबाय दिहिन, 
कुछ सरहज त हितुऔ काही गोबर से गोबराय दिहिन। 
देखय लाइक बचेन न एकव सलगा पोज बिगाड़ दिहिन, 
हम का बताई पहली होली पक्का रंग चढ़ाय दिहिन।।




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