प्रेम भाव से सिंचित निष्छल महक गांव की प्यारी है,
कच्चे पक्के मकानों में बसती दुनिया न्यारी है।
हर मौसम में खुशी मना कर झूम झूम के गाते हैं,
रहे न कोई बिरह किसी से साथ ये पर्व मनाते है।
हर होली को मिलने सबसे सबके घर में जाते है,
गांव की छांव को पाने हर कोई सहर से गांव को आते है।।
सबके दुख को अपना समझे गांव की ये हुशियारी है,
कच्चे पक्के मकानों में बसती दुनिया न्यारी है।।
देख के फसलों की मस्ती को मादक दिल पगलाया है,
खेतो में जो सरसो झूमे वो सुख कही न पाया है।
गर्मी ठंडी समझ न आती हर मौसम अपनाया है,
पतझड़ वाली ऋतु को भी तो हमने गले लगाया है।।
रहे सदा परिपूर्ण आचरण गैरो से भी यारी है,
कच्चे पक्के मकानों में बसती दुनिया न्यारी है।।
चोट किसी को लगती है तो दर्द सभी को होता है,
इसी प्रेम की चाहत में ये नयन हमेशा रोता है।
रात को खटिया बाहर डाले हर कोई चैन से सोता है,
रहे सदा जो गांव से बाहर वो ये सुख को खोता है।।
प्रेम भाव से सिंचित निष्छल महक गांव की प्यारी है,
कच्चे पक्के मकानों में बसती दुनिया न्यारी है।।
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